श्रीराम वन गमन छंद | राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम | Ram Ji Ko Dekh Kar Bhul Baithe Sab Kaam Lyrics in Hindi and English
**परिचय
‘श्री राम का वन गमन’ प्रकरण वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड का एक अत्यंत मार्मिक एवं महत्वपूर्ण भाग है। यह वह क्षण है जब अयोध्या के राजकुमार श्रीराम को पिता दशरथ द्वारा दिए गए वचन केअनुपालन में 14 वर्षों के वनवास पर जाना पड़ता है। इस घटना ने न केवल राम के जीवन को बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति, राजनीति और आदर्शों को गहराई से प्रभावित किया है। श्रीराम का वन गमन वचन की मर्यादा, त्याग, धर्म, कर्तव्य, प्रेम और मर्यादा का अद्वितीय उदाहरण है।
प्रसंग की पृष्ठभूमि:
अयोध्या के राजा दशरथ अपने जीवन के उत्तरार्ध में यह निर्णय लेते हैं कि वे अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को राजा घोषित करेंगे। यह समाचार अयोध्या में हर्ष और उल्लास का कारण बनता है। समस्त प्रजा राम के गुणों से परिचित थी - वे मर्यादापुरुषोत्तम, धर्मनिष्ठ, विनम्र, और न्यायप्रिय थे। लेकिन जब कैकेयी को यह बात ज्ञात होती है, तो उसकी दासी मंथरा उसे भड़काती है। मंथरा कैकेयी को यह विश्वास दिलाती है कि राम के राजा बनने के बाद भरत की स्थिति कमजोर हो जाएगी और कैकेयी का वर्चस्व समाप्त हो जाएगा। कैकेयी के मन में ईर्ष्या और मोह का बीज बोया जाता है, जो धीरे-धीरे क्रूर संकल्प में बदल जाता है।
कैकेयी के दो वरदान:
राजा दशरथ ने देवासुर संग्राम के समय कैकेयी को दो वरदान देने का वचन दिया था, जब कैकेयी ने युद्ध में उनकी प्राण-रक्षा की थी। अब कैकेयी उसी वचन को आधार बनाकर दशरथ से दो वर मांगती है- प्रथम भरत को राजगद्दी मिले एवं द्वितीय राम को 14 वर्षों का वनवास दिया जाए।
महाराज दशरथ यह सुनकर अचंभित और पीड़ित हो उठते हैं। वे राम को अत्यधिक प्रेम करते थे और कभी भी उनके बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते थे। वे कैकेयी से विनती करते हैं, परंतु कैकेयी अपने निर्णय पर अडिग रहती हैं। अंततः, वचनबद्ध दशरथ विवश होकर राम को बुलाकर यह कठोर आदेश सुनाते हैं।
श्रीराम की प्रतिक्रिया:
श्रीराम की प्रतिक्रिया अत्यंत शांत, संयमित और धर्मपूर्ण होती है। वे बिना किसी विरोध के, पिता के वचन की रक्षा के लिए वन जाने को तत्पर हो जाते हैं। यह क्षण श्रीराम के चरित्र की महानता को उजागर करता है। वे कहते हैं कि पितृवचन मानना मेरा धर्म है। राज्य मिले या न मिले, मुझे कोई मोह नहीं। राम के इस व्यवहार से स्पष्ट होता है कि वे सांसारिक सुखों से ऊपर हैं और उनके लिए सबसे बड़ा धर्म पिता की आज्ञा और वचन की मर्यादा है।
सीता और लक्ष्मण का साथ जाना:
जब राम वन जाने का निर्णय लेते हैं, तो सीता उनसे अनुरोध करती हैं कि वे भी साथ जाएंगी। राम उन्हें समझाते हैं कि वन का जीवन कठोर है, वहाँ सुख-सुविधाएँ नहीं हैं, परंतु सीता दृढ़ रहती हैं। वह कहती हैं कि जहाँ आप होंगे, वहीं मेरा वैभव है। आपके बिना यह महल भी मेरे लिए वन के समान है। लक्ष्मण भी अपने भ्राता की सेवा के लिए आग्रह करते हैं और कहते हैं कि वे भी साथ जाएंगे। इस प्रकार राम, सीता और लक्ष्मण तीनों वनवास के लिए प्रस्थान करते हैं।
अयोध्या की प्रतिक्रिया:
राम का वन गमन सुनकर पूरी अयोध्या शोकमग्न हो जाती है। नगरवासी राम से अत्यधिक प्रेम करते थे। जब उन्हें ज्ञात होता है कि राम को वनवास मिला है तो वे विलाप करने लगते हैं और राम के साथ वन जाने की इच्छा जताते हैं। लेकिन राम उन्हें समझाकर वापस भेज देते हैं।
राजा दशरथ पुत्र वियोग में दुखी होकर धीरे-धीरे अपनी इन्द्रियों को खोने लगते हैं। राम के जाने के कुछ समय बाद वे ‘राम’ का नाम लेते-लेते प्राण त्याग देते हैं।
राम का वन गमन भारत के लोकजीवन में एक गहरे सांस्कृतिक बोध के रूप में रच-बस गया है। तुलसीदास जी ने इसे "रामचरितमानस" में अत्यंत भावपूर्ण रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विभिन्न भागों में रामलीला, भजन, लोकगीतों और कथाओं में इस प्रसंग को भावुकता और आदर्श के रूप में चित्रित किया जाता है। आज भी जब राम का नाम लिया जाता है, तो उनके वन गमन की स्मृति हृदय को भावविभोर कर देती है। यह केवल एक कथा नहीं, बल्कि जीवन के उच्चतम मूल्यों का प्रतीक है और यही कारण है कि श्रीराम का वन गमन भारतीय मानस में युगों-युगों तक अमर रहेगा।
इसी कड़ी में प्रतापगढ़ के प्रसिद्ध कवि श्री सत्यम दुबे शार्दूल जी ने भी अपनी लेखनी श्रीराम वन गमन पर चलायी है और एक अत्यन्त ही सुन्दर छन्द की रचना की है। हम श्री सत्यम दुबे जी की इस दिव्य रचना को यहॉं प्रस्तुत कर रहे हैं, जो इस प्रकार है-
**राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम,
अपलक सोच रहे आता कौन धीर है;
आता कौन धीर वीर श्याम वर्ण है शरीर;
हाथ में धनुष लिए पीछे को तुणीर है,
तुणीर में चार बाण चारों करें झनकार;
अधर की वाणी सम बोलते कि वीर हैं,
वीर एक पीछे पीछे शांत चित्त मौन धारे,
शांत चित्त कह रहा देव सशरीर है।
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देव सशरीर किंतु मस्तक पर मुकुट नहीं,
रथ की तो बात और पादुका विहीन हैं;
पादुका विहीन मन कैसे कहे देव मुनि,
देव मुनि नहीं किंतु लगते नवीन हैं;
लगते नवीन तन पावन पुनीत मन,
जोगी जैसा वेश नहीं किसी के अधीन हैं;
किसी राजपुंज के प्रकाशमान बिंब तीन,
धर्म ध्वजा वस्त्र धारे लगते प्रवीण हैं।
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लगते प्रवीण भाई पूछो तनी नाम गांव,
आज रुक जाएं यहीं जाना यदि दूर है;
दूर दूर जंगलों में भटकेंगे कहां यहां,
जंगलों में जीव-जंतु बसे भरपूर हैं;
बसे भरपूर खायें सोयें रहें प्रात जाएं,
नगर यहां से अभी बहुत सुदूर है;
बहुत दिनों के बाद आया कोई आज यहां,
राम की कृपा से उसे रोकना ज़रूर है।
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श्रीराम वन गमन छंद | राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम | Ram Ji Ko Dekh Kar Bhul Baithe Sab Kaam Lyrics in Hindi and English
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Rām jī ko dekh kar bhūl baiṭhe sab kāma,
Apalak soch rahe ātā kaun dhīr hai;
Ātā kaun dhīr vīr shyām varṇa hai sharīra;
Hāth mean dhanuṣh lie pīchhe ko tuṇīr hai,
Tuṇīr mean chār bāṇ chāroan karean jhanakāra;
Adhar kī vāṇī sam bolate ki vīr haian,
Vīr ek pīchhe pīchhe shāanta chitta maun dhāre,
Shāanta chitta kah rahā dev sasharīr hai
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Dev sasharīr kiantu mastak par mukuṭ nahīan,
Rath kī to bāt aur pādukā vihīn haian;
Pādukā vihīn man kaise kahe dev muni,
Dev muni nahīan kiantu lagate navīn haian;
Lagate navīn tan pāvan punīt mana,
Jogī jaisā vesh nahīan kisī ke adhīn haian;
Kisī rājapuanja ke prakāshamān bianba tīna,
Dharma dhvajā vastra dhāre lagate pravīṇ haian
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Lagate pravīṇ bhāī pūchho tanī nām gāanva,
Āj ruk jāean yahīan jānā yadi dūr hai;
Dūr dūr jangaloan mean bhaṭakeange kahāan yahāan,
Jangaloan mean jīva-jantu base bharapūr haian;
Base bharapūr khāyean soyean rahean prāt jāean,
Nagar yahāan se abhī bahut sudūr hai;
Bahut dinoan ke bād āyā koī āj yahāan,
Rām kī kṛupā se use rokanā jrūr hai
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