बुधवार, 13 अगस्त 2025

मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो | Sohar Geet Lyrics in Hindi and English | More Ram Lihe Avtar

मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो | Sohar Geet Lyrics in Hindi and English | More Ram Lihe Avtar 

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भारतीय लोकसंस्कृति की पहचान उसके विविध और समृद्ध लोकगीतों से होती है। प्रत्येक प्रदेश के लोकगीतों में उस क्षेत्र की भाषा, रीति-रिवाज, सामाजिक जीवन और भावनाओं की झलक मिलती है। उत्तर भारत के भोजपुरी, अवधी, मैथिली, मगही, ब्रजभाषा और अन्य बोलियों में प्रचलित सोहर लोकगीत ऐसे ही लोकप्रिय गीत हैं जो विशेष रूप से शिशु जन्म के अवसर पर गाए जाते हैं। “सोहर” शब्द का अर्थ है सुख, आनंद या हर्ष। जब परिवार में नन्हे मेहमान का आगमन होता है, तो गाँव की महिलाएँ एकत्र होकर ढोलक की थाप पर सोहर गाती हैं और इस हर्षोल्लास के क्षण को लोकधुनों से सजाती हैं।
सोहर लोकगीतों की परंपरा सदियों पुरानी है। इनका जन्म उस समय हुआ जब मौखिक परंपरा ही संस्कृति का मुख्य माध्यम थी। लिखित साहित्य से पहले लोग अपनी भावनाओं को गीत और संगीत के रूप में व्यक्त करते थे।
सोहर लोकगीत केवल एक पारंपरिक गीत शैली नहीं, बल्कि भारतीय लोकसंस्कृति की आत्मा हैं। इनमें परिवार के नए जीवन के स्वागत के साथ-साथ, पीढ़ियों की सांस्कृतिक स्मृति, धार्मिक विश्वास और मानवीय भावनाएँ सजीव रहती हैं। आधुनिक जीवन की गति ने इनकी मौलिकता को चुनौती दी है, लेकिन यदि हम इनका दस्तावेजीकरण, प्रचार-प्रसार और शिक्षा में समावेश करें, तो ये आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जीवित रह सकते हैं।
सोहर गाकर हम न केवल एक नवजात शिशु का स्वागत करते हैं, बल्कि अपने अतीत, अपनी मिट्टी और अपनी संस्कृति से भी जुड़ते हैं।
सोहर लोकगीत हमारी सांस्कृतिक जड़ों से हमें जोड़े रखते हैं। यह परंपरा केवल एक नवजात शिशु का स्वागत नहीं, बल्कि हमारे अतीत और हमारी पहचान का उत्सव है। बदलते समय में इन्हें संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इन गीतों की मिठास और सामूहिक आनंद का अनुभव कर सकें।
इसी कड़ी में हम प्रसिद्ध कवि श्री सत्‍यम दुबे शार्दूल जी के द्वारा लिखा गया सोहर गीत आपके साथ साझा कर रहे हैं। हमें पूर्ण विश्‍वास है कि यह सोहर गीत आपको अवश्‍य पसन्‍द आयेगा। हम आपसे यह भी आग्रह करते हैं कि यदि आपके पास भी सोहर गीत हों तो आप हमारे साथ साझा करें जिससे कि लोक परम्‍परा का प्रवाह आगामी पीढ़ी तक निरन्‍तर होता रहे। 
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मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो,
मोरे कुल मा भवा भिनुसार सोहर गावअ हो;
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मातु कौसल्या लाल निहारइँ,
नज़र न लागइ काजल काढइँ,
अमृत क छूटइ धार सोहर गावअ हो;
मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो|
मोरे कुल मा भवा भिनुसार सोहर गावअ हो
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मातु कैकेइ मगन होइ के नाचैं,
पंडित गण सब पोथी बाचैं,
अद्भुत भरा दरबार सोहर गावअ हो;
मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो,
मोरे कुल मा भवा भिनुसार सोहर गावअ हो
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मातु सुमित्रा मगन होइ के झूमैं,
राजा दशरथ विह्वल घूमैं,
दर्शन चहैं इक बार सोहर गावअ हो;
मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो
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जे जौन माँगइ तौनइ पावइ,
झोली दुन्नउ हाथ उठावइ,
खुलि ग बा कोषागार सोहर गावअ हो;
मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो
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सब बाभन के गऊ देत हैं,
सुखी रहइँ आशीष लेत हैं,
किन्नर के मोतियन हार सोर गावअ हो,
मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो
मोरे कुल मा भवा भिनुसार सोहर गावअ हो
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मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो | Sohar Geet Lyrics in Hindi and English | More Ram Lihe Avtar 

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More rām lihe avatār sohar gāvaa ho,
More kul mā bhavā bhinusār sohar gāvaa ho;
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Mātu kausalyā lāl nihārai,
Najar n lāgai kājal kāḍhai,
Amṛut k chhūṭai dhār sohar gāvaa ho;
More rām lihe avatār sohar gāvaa ho|
More kul mā bhavā bhinusār sohar gāvaa ho
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Mātu kaikei magan hoi ke nāchaian,
Panḍit gaṇ sab pothī bāchaian,
Adbhut bharā darabār sohar gāvaa ho;
More rām lihe avatār sohar gāvaa ho,
More kul mā bhavā bhinusār sohar gāvaa ho
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Mātu sumitrā magan hoi ke zūmaian,
Rājā dasharath vihval ghūmaian,
Darshan chahaian ik bār sohar gāvaa ho;
More rām lihe avatār sohar gāvaa ho
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Je jaun māgai taunai pāvai,
Zolī dunnau hāth uṭhāvai,
Khuli g bā koṣhāgār sohar gāvaa ho;
More rām lihe avatār sohar gāvaa ho
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Sab bābhan ke gaū det haian,
Sukhī rahai āshīṣh let haian,
Kinnar ke motiyan hār sor gāvaa ho,
More rām lihe avatār sohar gāvaa ho
More kul mā bhavā bhinusār sohar gāvaa ho
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मंगलवार, 12 अगस्त 2025

श्रीराम वन गमन छंद | राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम | Ram Ji Ko Dekh Kar Bhul Baithe Sab Kaam Lyrics in Hindi and English

श्रीराम वन गमन छंद | राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम | Ram Ji Ko Dekh Kar Bhul Baithe Sab Kaam Lyrics in Hindi and English

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परिचय

‘श्री राम का वन गमन’ प्रकरण वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड का एक अत्यंत मार्मिक एवं महत्वपूर्ण भाग है। यह वह क्षण है जब अयोध्या के राजकुमार श्रीराम को पिता दशरथ द्वारा दिए गए वचन केअनुपालन में 14 वर्षों के वनवास पर जाना पड़ता है। इस घटना ने न केवल राम के जीवन को बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति, राजनीति और आदर्शों को गहराई से प्रभावित किया है। श्रीराम का वन गमन वचन की मर्यादा, त्याग, धर्म, कर्तव्य, प्रेम और मर्यादा का अद्वितीय उदाहरण है।

प्रसंग की पृष्ठभूमि:

अयोध्या के राजा दशरथ अपने जीवन के उत्तरार्ध में यह निर्णय लेते हैं कि वे अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को राजा घोषित करेंगे। यह समाचार अयोध्या में हर्ष और उल्लास का कारण बनता है। समस्त प्रजा राम के गुणों से परिचित थी - वे मर्यादापुरुषोत्तम, धर्मनिष्ठ, विनम्र, और न्यायप्रिय थे। लेकिन जब कैकेयी को यह बात ज्ञात होती है, तो उसकी दासी मंथरा उसे भड़काती है। मंथरा कैकेयी को यह विश्वास दिलाती है कि राम के राजा बनने के बाद भरत की स्थिति कमजोर हो जाएगी और कैकेयी का वर्चस्व समाप्त हो जाएगा। कैकेयी के मन में ईर्ष्या और मोह का बीज बोया जाता है, जो धीरे-धीरे क्रूर संकल्प में बदल जाता है।

कैकेयी के दो वरदान:

राजा दशरथ ने देवासुर संग्राम के समय कैकेयी को दो वरदान देने का वचन दिया था, जब कैकेयी ने युद्ध में उनकी प्राण-रक्षा की थी। अब कैकेयी उसी वचन को आधार बनाकर दशरथ से दो वर मांगती है- प्रथम भरत को राजगद्दी मिले एवं द्वितीय राम को 14 वर्षों का वनवास दिया जाए।

महाराज दशरथ यह सुनकर अचंभित और पीड़ित हो उठते हैं। वे राम को अत्यधिक प्रेम करते थे और कभी भी उनके बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते थे। वे कैकेयी से विनती करते हैं, परंतु कैकेयी अपने निर्णय पर अडिग रहती हैं। अंततः, वचनबद्ध दशरथ विवश होकर राम को बुलाकर यह कठोर आदेश सुनाते हैं।

श्रीराम की प्रतिक्रिया:

श्रीराम की प्रतिक्रिया अत्यंत शांत, संयमित और धर्मपूर्ण होती है। वे बिना किसी विरोध के, पिता के वचन की रक्षा के लिए वन जाने को तत्पर हो जाते हैं। यह क्षण श्रीराम के चरित्र की महानता को उजागर करता है। वे कहते हैं कि पितृवचन मानना मेरा धर्म है। राज्य मिले या न मिले, मुझे कोई मोह नहीं। राम के इस व्यवहार से स्पष्ट होता है कि वे सांसारिक सुखों से ऊपर हैं और उनके लिए सबसे बड़ा धर्म पिता की आज्ञा और वचन की मर्यादा है।

सीता और लक्ष्मण का साथ जाना:

जब राम वन जाने का निर्णय लेते हैं, तो सीता उनसे अनुरोध करती हैं कि वे भी साथ जाएंगी। राम उन्हें समझाते हैं कि वन का जीवन कठोर है, वहाँ सुख-सुविधाएँ नहीं हैं, परंतु सीता दृढ़ रहती हैं। वह कहती हैं कि जहाँ आप होंगे, वहीं मेरा वैभव है। आपके बिना यह महल भी मेरे लिए वन के समान है। लक्ष्मण भी अपने भ्राता की सेवा के लिए आग्रह करते हैं और कहते हैं कि वे भी साथ जाएंगे। इस प्रकार राम, सीता और लक्ष्मण तीनों वनवास के लिए प्रस्थान करते हैं।

अयोध्या की प्रतिक्रिया:

राम का वन गमन सुनकर पूरी अयोध्या शोकमग्न हो जाती है। नगरवासी राम से अत्यधिक प्रेम करते थे। जब उन्हें ज्ञात होता है कि राम को वनवास मिला है तो वे विलाप करने लगते हैं और राम के साथ वन जाने की इच्छा जताते हैं। लेकिन राम उन्हें समझाकर वापस भेज देते हैं।

राजा दशरथ पुत्र वियोग में दुखी होकर धीरे-धीरे अपनी इन्द्रियों को खोने लगते हैं। राम के जाने के कुछ समय बाद वे ‘राम’ का नाम लेते-लेते प्राण त्याग देते हैं।

राम का वन गमन भारत के लोकजीवन में एक गहरे सांस्कृतिक बोध के रूप में रच-बस गया है। तुलसीदास जी ने इसे "रामचरितमानस" में अत्यंत भावपूर्ण रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विभिन्न भागों में रामलीला, भजन, लोकगीतों और कथाओं में इस प्रसंग को भावुकता और आदर्श के रूप में चित्रित किया जाता है। आज भी जब राम का नाम लिया जाता है, तो उनके वन गमन की स्मृति हृदय को भावविभोर कर देती है। यह केवल एक कथा नहीं, बल्कि जीवन के उच्चतम मूल्यों का प्रतीक है और यही कारण है कि श्रीराम का वन गमन भारतीय मानस में युगों-युगों तक अमर रहेगा।

इसी कड़ी में प्रतापगढ़ के प्रसिद्ध कवि श्री सत्‍यम दुबे शार्दूल जी ने भी अपनी लेखनी श्रीराम वन गमन पर चलायी है और एक अत्‍यन्‍त ही सुन्‍दर छन्‍द की रचना की है। हम श्री सत्‍यम दुबे जी की इस दिव्‍य रचना को यहॉं प्रस्‍तुत कर रहे हैं, जो इस प्रकार है- 
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राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम,
अपलक सोच रहे आता कौन धीर है;
आता कौन धीर वीर श्याम वर्ण है शरीर;
हाथ में धनुष लिए पीछे को तुणीर है,
तुणीर में चार बाण चारों करें झनकार;
अधर की वाणी सम बोलते कि वीर हैं,
वीर एक पीछे पीछे शांत चित्त मौन धारे,
शांत चित्त कह रहा देव सशरीर है। 
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देव सशरीर किंतु मस्तक पर मुकुट नहीं,
रथ की तो बात और पादुका विहीन हैं;
पादुका विहीन मन कैसे कहे देव मुनि,
देव मुनि नहीं किंतु लगते नवीन हैं;
लगते नवीन तन पावन पुनीत मन,
जोगी जैसा वेश नहीं किसी के अधीन हैं;
किसी राजपुंज के प्रकाशमान बिंब तीन,
धर्म ध्वजा वस्त्र धारे लगते प्रवीण हैं।
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लगते प्रवीण भाई पूछो तनी नाम गांव,
आज रुक जाएं यहीं जाना यदि दूर है;
दूर दूर जंगलों में भटकेंगे कहां यहां,
जंगलों में जीव-जंतु बसे भरपूर हैं;
बसे भरपूर खायें सोयें रहें प्रात जाएं,
नगर यहां से अभी बहुत सुदूर है;
बहुत दिनों के बाद आया कोई आज यहां,
राम की कृपा से उसे रोकना ज़रूर है।
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श्रीराम वन गमन छंद | राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम | Ram Ji Ko Dekh Kar Bhul Baithe Sab Kaam Lyrics in Hindi and English
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Rām jī ko dekh kar bhūl baiṭhe sab kāma,
Apalak soch rahe ātā kaun dhīr hai;
Ātā kaun dhīr vīr shyām varṇa hai sharīra;
Hāth mean dhanuṣh lie pīchhe ko tuṇīr hai,
Tuṇīr mean chār bāṇ chāroan karean jhanakāra;
Adhar kī vāṇī sam bolate ki vīr haian,
Vīr ek pīchhe pīchhe shāanta chitta maun dhāre,
Shāanta chitta kah rahā dev sasharīr hai 
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Dev sasharīr kiantu mastak par mukuṭ nahīan,
Rath kī to bāt aur pādukā vihīn haian;
Pādukā vihīn man kaise kahe dev muni,
Dev muni nahīan kiantu lagate navīn haian;
Lagate navīn tan pāvan punīt mana,
Jogī jaisā vesh nahīan kisī ke adhīn haian;
Kisī rājapuanja ke prakāshamān bianba tīna,
Dharma dhvajā vastra dhāre lagate pravīṇ haian
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Lagate pravīṇ bhāī pūchho tanī nām gāanva,
Āj ruk jāean yahīan jānā yadi dūr hai;
Dūr dūr jangaloan mean bhaṭakeange kahāan yahāan,
Jangaloan mean jīva-jantu base bharapūr haian;
Base bharapūr khāyean soyean rahean prāt jāean,
Nagar yahāan se abhī bahut sudūr hai;
Bahut dinoan ke bād āyā koī āj yahāan,
Rām kī kṛupā se use rokanā jrūr hai
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शनिवार, 17 मई 2025

गये जैमन हित ज्यौनार जनक नृपके अँगना | Lokgeet Gari Geet Lyrics in Hindi and English | Gaye Jaiman Hit Jyonar Janak Nrip Ke Angana

गये जैमन हित ज्यौनार जनक नृपके अँगना | Lokgeet Gari Geet Lyrics in Hindi and English | Gaye Jaiman Hit Jyonar Janak Nrip Ke Angana

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Lokgeet Gari Geet Lyrics in Hindi and English
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यह अवधी भाषा में रचित एक सुंदर लोकगीत है जो श्रीराम के विवाह के अवसर पर जनकपुरी में हुई जयमाला और ज्यौनार (भोजन) की आनंदमयी छवि प्रस्तुत करता है। गीत में जनक के आँगन में आये बारातियों के स्वागत, भोजनों की विविधता, और पारंपरिक रीति-नीति का जीवंत वर्णन है।
यह गीत केवल भोजन का वर्णन नहीं है, बल्कि आतिथ्य, संस्कृति, परंपरा और सौहार्द्र की मिसाल है। इस तरह के लोकगीत भारतीय समाज के लोक-संवेदनाओं और जीवनशैली को जीवंत बनाए रखते हैं।
भारतीय लोक परंपरा में शादी-ब्याह के गीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक इतिहास के जीवंत दस्तावेज होते हैं। अवधी क्षेत्र का प्रसिद्ध लोकगीत “गए जैमन हित ज्यौनार” जनकपुर में भगवान राम के विवाह के अवसर पर हुए भोज का ऐसा ही एक मनोहारी चित्रण प्रस्तुत करता है।
यह गीत सिर्फ भोजन की विविधता नहीं, बल्कि आतिथ्य, शिष्टाचार और उत्सव की भावना को भी दर्शाता है। आइए इस गीत को विस्तार से समझते हैं।
यह लोकगीत श्रीराम विवाह के अवसर पर आयोजित भव्य भोज (ज्यौनार) का सुंदर वर्णन करता है। जनकपुर के आँगन में राजा दशरथ सहित राम-लक्ष्मण, भरत-शत्रुघ्न, गुरु वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र और पूरी बारात का स्वागत पारंपरिक अवधी भोज से किया जाता है।
यह भोजन मात्र स्वाद का विषय नहीं था, बल्कि संपूर्ण आनंद और आतिथ्य संस्कार का प्रतिनिधित्व करता है।
लोकगीत हमारी सभ्यता की आत्मा हैं। “गए जैमन हित ज्यौनार” न केवल एक गीत है, बल्कि भारतीय संस्कृति की वह धार्मिक, सामाजिक और भावनात्मक विरासत है, जो पीढ़ियों तक चली आ रही है। ऐसे गीतों को सहेजना और साझा करना हमारी जिम्मेदारी है।
"ज्यौनार" शब्द का मतलब भोज से है, विशेषकर वैवाहिक अवसरों पर होने वाला सत्कार भोज।
क्या आपके पास भी कोई पारंपरिक विवाह गीत है? कमेंट करके साझा करें!
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गये जैमन हित ज्यौनार
जनक नृपके अँगना।
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राम लषन अरु भरत शत्रुहन 
अवधपुरी भूपाल
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गुरु वशिष्ठ औ कौशिक बैठे 
जैमनहित तत्काल
बराती बैठे अँगना ॥
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गये जैमन हित ज्यौनार
जनक नृपके अँगना।
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पातरि परसिके दौना परसे 
लोटा और गिलास। 
पूरी कचौरी दही परस के 
धरौ अचार सुपास॥ 
बहुत आनन्द माना ॥
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गये जैमन हित ज्यौनार
जनक नृपके अँगना।
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सेब इमरती बालूसाही 
गुजिया नुकती दार । 
मधु मेवा पकमान मिठाई 
व्यंजन परस समार॥ 
बरणी नहिं जावें उपमा ॥
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गये जैमन हित ज्यौनार
जनक नृपके अँगना।
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जब जौनारि परसि गई सिगरी 
होय मंगला चार। 
कबि सुन्दर जौनार बनाई 
तिरियन हेत समार॥ 
जनक अति खुश मन माँ ॥
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गये जैमन हित ज्यौनार
जनक नृपके अँगना।
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गये जैमन हित ज्यौनार जनक नृपके अँगना | Lokgeet Gari Geet Lyrics in Hindi and English | Gaye Jaiman Hit Jyonar Janak Nrip Ke Angana

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Gaye Jaiman hit jyaunar
Janak nripke angna।
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Ram Lshan aru Bharat Shatruhan
Avadhpuri bhupaal
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Guru Vashishth au Kaushik baithe
Jaiman hit tatkaal
Barati baithe angna ॥
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Gaye Jaiman hit jyaunar
Janak nripke angna।
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Paatar parsi ke dauna parse
Lota aur gilass।
Puri kachaudi dahi paras ke
Dharau achaar supaas॥
Bahut aanand maana ॥
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Gaye Jaiman hit jyaunar
Janak nripke angna।
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Seb imarti balusaahi
Gujiya nukti daar ।
Madhu mewa pakmaan mithai
Vyanjan paras samaar॥
Barani nahin jaaven upma ॥
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Gaye Jaiman hit jyaunar
Janak nripke angna।
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Jab jaunari parsi gayi sigri
Hoy mangla chaar।
Kabi sundar jaunaar banai
Tiriyan het samaar॥
Janak ati khush man maa ॥
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Gaye Jaiman hit jyaunar
Janak nripke angna।
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गुरुवार, 15 मई 2025

सिव पूजत हो गौरी पूजत जनक दुलारी | Ram Bhajn Lyrics in Hindi & English | Shiv Pujat Ho Gauri Pujat Janak Dulari

सिव पूजत हो गौरी पूजत जनक दुलारी | Ram Bhajn Lyrics in Hindi & English | Shiv Pujat Ho Gauri Pujat Janak Dulari

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Ram Bhajn Lyrics in Hindi & English
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संपादक - प्रो० सूर्य प्रसाद दीक्षित
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भारतीय लोकसंस्कृति में देवी गौरी (पार्वती) की पूजा और भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है। अवधी क्षेत्र के इस लोकप्रिय लोकगीत “सिव पूजत हो गौरी” में देवी की पूजा, सीता की शिव भक्ति और धार्मिक भावनाओं का मनोहारी चित्रण मिलता है।
यह गीत न केवल धार्मिक श्रद्धा को दर्शाता है, बल्कि जनजीवन की सादगी और लोकधार्मिक भावनाओं को भी उजागर करता है।
यह गीत पारंपरिक अवधी भक्ति और विवाह संस्कार की झलक प्रस्तुत करता है।
गौरी पूजा मुख्यतः हिन्दू महिलाओं द्वारा की जाती है, जो परिवार की समृद्धि और सौभाग्य की कामना करती हैं।
शिव जी की आराधना विशेष रूप से विवाह योग्य कन्याओं के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
इस गीत के माध्यम से जनजीवन में धार्मिक अनुष्ठान और भावनाओं का सामंजस्य दिखता है।
“सिव पूजत हो गौरी” लोकगीत धार्मिक श्रद्धा, सांस्कृतिक विरासत और जनजीवन की सादगी का अनुपम उदाहरण है। यह गीत हमें याद दिलाता है कि कैसे हमारी लोकधार्मिक परंपराएँ पीढ़ी दर पीढ़ी संजोई जाती हैं।
यदि आप इस प्रकार के लोकगीत पसंद करते हैं, तो हमारे ब्लॉग को फॉलो करें और अपनी पसंदीदा लोककथाएँ साझा करें!
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सिव पूजत हो गौरी 
पूजत जनक दुलारी 
बैठी फुलवारी।
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पाँचौ फूल पाँच बेल की पाती हो 
सीता हथवा में लीन्हें बाती 
बैठी फुलवारी ।
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फुलवै दूरि सीता शिव जी को पूजइँ हो 
अब अच्छत मारी दुइ चारी 
बैठी फुलवारी ।।
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अब शिव बाबा हो 
अब शिव भोले 
हँसले ठठारी 
बैठी फुलवारी ।। 
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जवन माँगन तुहुँ माँगो हो जानकी 
अब उहै माँगन हम देबई 
बैठी फुलवारी ।।
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अब सिव बाबा हो 
अब सिव भोले 
कब तक रहबै कुँवारी 
बैठी फुलवारी।
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सिव पूजत हो गौरी पूजत जनक दुलारी | Ram Bhajn Lyrics in Hindi & English | Shiv Pujat Ho Gauri Pujat Janak Dulari

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Siv poojat ho Gauri
Poojat Janak dulaari
Baithi phulvaari
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Paanchou phool paanch bel ki paati ho
Sita hathwa mein leenhain baati
Baithi phulvaari
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Phulvai doori Sita Shiv ji ko poojaain ho
Ab achchat maari dui chaari
Baithi phulvaari
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Ab Shiv Baba ho
Ab Shiv Bhole
Hansle thathaari
Baithi phulvaari
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Jawan maangan tuhũ maango ho Janki
Ab uhai maangan hum debai
Baithi phulvaari
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Ab Siv Baba ho
Ab Siv Bhole
Kab tak rahbai kunwaari
Baithi phulvaari
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सखि ये दोउ राज किसोर सभा में आये | Ram Bhajan Lyrics in Hindi & English | Sakhi Ye Dou Raj Kisor Sabha Me Aaye

सखि ये दोउ राज किसोर सभा में आये | Ram Bhajan Lyrics in Hindi & English | Sakhi Ye Dou Raj Kisor Sabha Me Aaye

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Ram Bhajan Lyrics in Hindi & English
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जनकपुरी की सभा में श्री राम का आगमन 
भारतीय संस्कृति में रामकथा केवल एक धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि आदर्श जीवन का मार्गदर्शन है। रामायण के विवाह प्रसंग में एक ऐसा क्षण आता है, जब अयोध्या के राजकुमार श्री राम, अपने छोटे भाई लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र के साथ मिथिला नरेश जनक की सभा में प्रवेश करते हैं। यह दृश्य केवल कथा का मोड़ नहीं, बल्कि सौंदर्य, मर्यादा और भक्ति का अद्वितीय संगम है।
मिथिला की सभा
मिथिला के राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर की घोषणा की थी। शर्त थी – जो वीर भगवान शिव का धनुष (पिनाक) उठाकर प्रत्यंचा चढ़ा देगा, वही सीता से विवाह करेगा। यह कार्य अब तक किसी से संभव नहीं हो पाया था।
जनक की विशाल सभा में देश-देशांतर के राजा, राजकुमार, विद्वान और वीर उपस्थित थे। सभा अलंकृत थी – सुनहरे स्तंभ, रत्नजड़ित आसन, फूलों की वर्षा, और भव्य द्वार पर संगीत की गूंज।
जनकपुरी की सभा में राम, लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र का प्रवेश केवल एक कथा प्रसंग नहीं, बल्कि आदर्श आचरण, विनम्रता और भक्ति का जीवंत चित्र है। यह दृश्य आज भी भक्ति-साहित्य में उतना ही प्रासंगिक है, जितना हजारों वर्ष पहले था। इसे पढ़ते-सुनते समय हृदय में श्रद्धा, आँखों में भक्ति और मन में शांति का अनुभव स्वाभाविक है।
इसी क्रम में लेखक एवं संपादक - प्रो० सूर्य प्रसाद दीक्षित के द्वारा संकलित एक सुन्‍दर लोकगीत प्रस्‍तुत है। मुझे पूर्ण विश्‍वास है कि यह लोकगीत आपको अवश्‍य पसन्‍द आयेगा और आपको अतीत की गहराइयों में ले जायेगा। मेरा आपसे आग्रह है कि यदि आपके पास भी आपके क्षेत्र में प्रचलित कोई लोकगीत हो तो हमें अवश्‍य उपलब्‍ध करायें हम उसे आपके नाम से साथ अपने ब्‍लाग पर प्रकाशित करेंगे।
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सखि ये दोउ राज किसोर

सभा में आये।।
राजा जनक परन यकु ठाना 
धनुवा देत धराये।
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देस-देस के भूपति आये 
धनुवा नहिं सकत उठाये।
उठे राम गुरु अग्या लइके 
धनुवा लेत चढ़ाये।
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धरत, उठावत कोऊ नहि देखत 
छनहीं में तोरि बहायें
सखि ये दोउ राज किसोर
सभा में आये।।
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सखि ये दोउ राज किसोर सभा में आये | Ram Bhajan Lyrics in Hindi & English | Sakhi Ye Dou Raj Kisor Sabha Me Aaye

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Sakhi ye dou raaj kisor
Sabha mein aaye
Raja Janak paran yaku thaana
Dhanua det dharaaye
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Des-des ke bhoopati aaye
Dhanua nahin sakat uthaaye
Uthe Ram guru agya laike
Dhanua let chadhaaye
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Dharat, uthavat kou nahin dekhat
Chhanhi mein tori bahaaye
Sakhi ye dou raaj kisor
Sabha mein aaye
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