सोहर गीत : अंगना बटोरली भउजी का भावार्थ और महत्व | Sohar Geet : Angna Batorli Bhauji ka Bhavarth aur Mahatva

परिचय
भारतीय लोकजीवन की आत्मा उसके लोकगीत हैं। लोकगीत केवल गाने के लिए नहीं होते, बल्कि वे समाज की सोच, परंपराओं और संस्कारों को संजोकर रखते हैं। सोहर गीत (Sonhar/Sohar Geet) बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और आसपास के क्षेत्रों में संतान-जन्म के अवसर पर गाए जाने वाले मंगलगीत हैं। इनका मुख्य उद्देश्य नवजात शिशु के आगमन पर उल्लास व्यक्त करना और घर-आँगन में मंगलकामना करना होता है। साथी ही ये गीत ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करने का साधन भी होते हैं।
ऐसे ही एक प्रसिद्ध सोहर गीत की पंक्तियाँ हैं –
अँगना बटोरली भउजी हो बढ़इतिन हो ना।
लचिआ गोबरवा बिनि लिअवतू हो ना…
यह गीत केवल शब्दों का मेल नहीं, बल्कि गाँव की स्त्रियों के श्रम, ईश्वर की कृपा और नवजीवन के स्वागत की अभिव्यक्ति है। आइए विस्तार से इसका भावार्थ और सांस्कृतिक महत्व समझते हैं।
गीत का संक्षिप्त परिचय एवं भावार्थ
यह सोहर गीत गाँव के वातावरण और स्त्रियों के दैनिक जीवन से शुरू होता है। भउजी (भाभी) आँगन बटोर रही हैं। लचिया (बहन या गाँव की युवती) गोबर बीनने गई है। वह जंगल, तालाब और चरवाही का चक्कर लगाती है। अचानक उसके जीवन में दैवीय गर्भाधान का संकेत मिलता है। आगे गीत में शिशु जन्म की भविष्यवाणी और उस शिशु के लिए शुभकामनाएँ दी जाती हैं।
गीत की शुरुआत गाँव के आम दृश्य से होती है। एक तरफ भाभी आँगन साफ कर रही हैं, तो दूसरी तरफ लचिया गोबर बीन रही है। इससे ग्रामीण जीवन की सादगी और श्रमशीलता प्रकट होती है। लचिया का दिनचर्या अत्यन्त कठिन है। उसे पशुओं को चराने के लिए जंगल भी जाना होता है। एक बार जंगल गई, दूसरी बार भी और तीसरी बार मवेशी चराने गई। इससे स्त्रियों के कठोर श्रम और प्रकृति से गहरे संबंध का चित्रण मिलता है। लचिया टोकरी भरकर गोबर ले आई। फिर प्यास लगने पर सुबह तालाब से पानी पीने गई। पानी यहाँ जीवन और पवित्रता का प्रतीक है। लचिया ने पहला और दूसरा घूँट पानी पिया, लेकिन तीसरे घूँट के साथ ही वह गर्भवती हो गई। यह दैवीय कृपा का प्रतीक है। जब लचिया लौटती है तो गाँव की गलियों से होकर आती है। सबकी नज़र उस पर पड़ती है। यह समाज की जिज्ञासा और स्त्रियों की स्थिति को भी दर्शाता है। ईश्वर की ज्योति घर आती है। राम दरवाज़े पर बैठे हैं और मन को मोह रहे हैं। यहाँ भगवान राम का स्मरण दर्शाता है कि संतान-जन्म केवल जैविक नहीं बल्कि दैवीय घटना है। सब पूछते हैं – यह कौन है? जवाब आता है – यह तो मेरी बहन है। कहा जाता है हाँ, यही तुम्हारी बहन है, और अब वह गर्भवती है। गीत में आगे कहा गया है कि अगर बछड़ा जन्म लेगा, तो उसके लिए सोने का खूंटा और पगहा बनेगा। अगर बेटा जन्म लेगा, तो उसे नए वस्त्र पहनाए जाएँगे और उत्सव मनाया जाएगा। यह अपने आपमें एक रहस्यात्मक सोहर के रूप में भी उजागर होता है। यहाँ पुत्र जन्म को अधिक महत्व दिया गया है। यह उस समय की पितृसत्तात्मक सोच और सामाजिक मान्यता को दर्शाता है।
सोहर गीत की विशेषताएँ
यह हमेशा समूह में गाए जाते हैं।
गीत गाने वाली प्रायः महिलाएँ होती हैं।
इसमें हास्य, व्यंग्य, शुभकामना और लोककथा सबका मेल होता है।
हर सोहर गीत में कहीं न कहीं भगवान का स्मरण होता है।
इन गीतों से घर का वातावरण आनंदमय और पवित्र बनता है।
सोहर गीतों में परिवार के सभी सदस्यों का नाम लेकर भी गाना गाने की परम्परा रही है।
सोहर गीतों के माध्यम से ईश्वर के प्रति आभार भी व्यक्त किया जाता है।
निष्कर्ष
सोहर गीत अँगना बटोरली भउजी… केवल संतान-जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारतीय ग्रामीण जीवन, स्त्रियों की भूमिका, सामाजिक मान्यता और धार्मिक विश्वास का सजीव चित्र है। इसमें श्रम और साधना है। इसमें गर्भाधान और ईश्वर की कृपा है। इसमें संतान-जन्म की खुशी और भविष्य की शुभकामनाएँ हैं। यही कारण है कि सोहर गीत आज भी गाँवों में उतने ही उत्साह से गाए जाते हैं, जितने सदियों पहले गाए जाते थे।
हम आशा करते हैं कि यह सोहर गीत आपको अवश्य पसन्द आयेगा। साथ ही अगर आपके पास भी आपके क्षेत्र में गाया जाने वाला कोई सोहर गीत हो तो हमें अवश्य उपलब्ध करायें। हम उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे। यह सोहर गीत हमें श्री कमल सिंह जी के ब्लाग ''पूर्वांचल के श्रम लोकगीत'' से प्राप्त हुआ है। इस लोकगीत के संकलन के लिए हम श्री कमल सिंह जी के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।
तो आइये अब इस प्रसिद्ध सोहर गीत का आनन्द लेते हैं। सोहर के बोल इस प्रकार हैं -
**अँगना बटोरली भउजी हो बढ़इतिन हो ना।
लचिआ गोबरवा बिनि लिअवतू हो ना।
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एक बन गइली हो लाची अवरू दुसरवा हो ना।
लचिआ तीसर बनवाँ गइआ चरवहवा हो ना।
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गोबराहि बीनि ये लचिआ खाँची समुअवली हो ना।
राम लगिहों गइली तड़की पिअसिआ हो ना।
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एक बन गइली हो लचिआ अवरू दूसरवाँ हो ना।
लचिआ तीसर बनवाँ ताके पोखरवा हो ना।
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लउकहि के लउके हो लचिया गउवाँ के अरड़ियाँ हो ना।
लचिया चलि हो भइली गउवाँ के अरड़ियाँ हो ना।
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एक चिरुवा पिअली हो लचिआ अवरू दूसरवाँ हो ना।
लचिआ तीसर चिरुआ रहि गइलय गरभवा हो ना।
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गोबरहिं लेइ हो लचिआ घर के लवटली हो ना।
लचिआ जाइ सुतेली रंग महलिआ हो ना।
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हरि जोति अइलय कुदारि मारी अइलय हो ना।
रामा बइठयल डेवढ़िआ मनवाँ मारी हो ना।
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सबके त देखों ये धनियाँ भर से अँगनवाँ हो ना।
धनियाँ नाहीं रे लउकय लाची मोर बहिनियाँ हो ना।
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लाची तोर बहिनियाँ ये राजा गरभे मातल हो ना।
राजा जाइ के सुतेली रंग महलिआ हो ना।
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एतनी बचनियाँ हो धनियाँ से सुनहीं ना पवलय हो ना।
भइआ बसवा हो पइठी काँटे कइनियाँ हो राम।
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एक सिटकुन मरलय ये भइआ अवरू दुसरवाँ हो ना।
लचिआ तीसरे में घूमें करवटिआ हो ना।
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किआ तुहूँ भुललू ये बहिनी भइआ से भतिजवा हो ना।
बहिनी किआ तुहूँ भुललू गउवाँ के गोइड़वाँ हो ना।
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नाहीं हम भुलली हो भइआ, भइआ से भतिजवा हो ना।
भइआ नाहीं भुलली गउवाँ के गोइड़वाँ हो ना।
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अगना बटोरती भउजी बढ़इतिन हो ना।
लचिआ गोबरवा हो बिनि लेअवतू हो ना।
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एक वन गइली हो भइआ अवरु दुसरवाँ हो ना।
भइआ तीसरे बनवाँ गइआ चरवहवा हो ना।
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गोबरा हि बीनी हो भइआ खाँची समुअवती हो ना।
भइआ लागी गइली तड़की पिअसिआ हो ना।
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पोखरा के भीटे भइआ तकली ताल पोखरवा हो ना।
भइआ कतहूँ ना लउकय ताल पोखरवा हो ना।
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लउकहि के लउकय भइआ गउवाँ के अरड़ियाँ ना।
भइआ चली हो भइली गउवाँ के अरड़ियाँ हो ना।
**
एक चिरुआ पिअली हो भइआ अवरू दुसरवाँ हो ना।
भइआ तीसर चिरुआ रहि गइलय गरभवा हो ना।
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जऊँ तोरे लचिआ हो बछरू जनमिहय हो ना।
लचिआ सोनवाँ के मढ़इबय उनकर खुरवा हो ना।
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जऊँ तोरे लचिआ रे बेटवा जनमिहैं हो ना।
लचिआ लुगरी पहिराई घर निसरबय हो ना।
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जब तोरे लचिआ रे बछरू जनमिहय हो ना।
लचिआ सोनवाँ के बनवइबय उनकर पगहा हो ना।
लचिआ सोनवाँ के गड़इबय उनकर खुटवा हो ना।
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जऊँ तोरे लचिआ रे बेटवा जनमिहय हो ना।
लचिआ देसवा से तोहके निसरबय हो ना।
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#सोहर गीत : अंगना बटोरली भउजी का भावार्थ और महत्व | Sohar Geet : Angna Batorli Bhauji ka Bhavarth aur Mahatva
**Angna batorli bhauji ho badhaitin ho na.
Lachiya gobarwa bini liavatu ho na.
**
Ek ban gaili ho lachi avaru dusarwa ho na.
Lachiya teesra banwa gaiya charvaha ho na.
**
Gobrahhi bini ye lachi khanchi samuawali ho na.
Ram lagihon gaili tadki piasiya ho na.
**
Ek ban gaili ho lachi avaru dusarwa ho na.
Lachiya teesra banwa take pokharwa ho na.
**
Laukahi ke lauke ho lachiya gauwa ke aradiya ho na.
Lachiya chali ho bhaili gauwa ke aradiya ho na.
**
Ek chirwa piali ho lachiya avaru dusarwa ho na.
Lachiya teesra chirwa rahi gailay garbhwa ho na.
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Gobrah hi leyi ho lachiya ghar ke lawatli ho na.
Lachiya jai suteli rang mahalia ho na.
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Hari jyoti ailay kudari maari ailay ho na.
Rama baithayal dewdhiya manwa maari ho na.
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Sabke ta dekho ye dhaniya bhar se angnawa ho na.
Dhaniya nahi re laukay lachi mor bahiniya ho na.
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Lachi tor bahiniya ye raja garbhe matal ho na.
Raja jai ke suteli rang mahalia ho na.
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Etni bachaniya ho dhaniya se sunhin na pvalay ho na.
Bhaiya baswa ho paithi kaante kainiya ho Ram.
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Ek sitkun marlay ye bhaiya avaru dusarwa ho na.
Lachiya teesre me ghoome karwatiya ho na.
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Kia tuhu bhullalu ye bahini bhaiya se bhatijwa ho na.
Bahini kia tuhu bhullalu gauwa ke goidwawa ho na.
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Nahi hum bhullali ho bhaiya, bhaiya se bhatijwa ho na.
Bhaiya nahi bhullali gauwa ke goidwawa ho na.
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Agna batorati bhauji badhaitin ho na.
Lachiya gobarwa ho bini leavatu ho na.
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Ek ban gaili ho bhaiya avaru dusarwa ho na.
Bhaiya teesre banwa gaiya charvaha ho na.
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Gobrah hi bini ho bhaiya khanchi samuawati ho na.
Bhaiya lagi gaili tadki piasiya ho na.
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Pokhara ke bhite bhaiya takli taal pokharwa ho na.
Bhaiya katahu na laukay taal pokharwa ho na.
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Laukahi ke lauke bhaiya gauwa ke aradiya na.
Bhaiya chali ho bhaili gauwa ke aradiya ho na.
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Ek chirwa piali ho bhaiya avaru dusarwa ho na.
Bhaiya teesra chirwa rahi gailay garbhwa ho na.
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Jau tore lachiya ho bachhru janmihay ho na.
Lachiya sonwa ke madhaiyb unkar khurwa ho na.
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Jau tore lachiya re betwa janmihain ho na.
Lachiya lugari pahirayi ghar nisarbey ho na.
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Jab tore lachiya re bachhru janmihay ho na.
Lachiya sonwa ke banwaibey unkar pagha ho na.
Lachiya sonwa ke gadaibey unkar khutwa ho na.
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Jau tore lachiya re betwa janmihay ho na.
Lachiya deswa se tohke nisarbey ho na.
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