बुधवार, 13 जुलाई 2022

कथा प्रसंग 002 : स्‍वामी राजेश्‍वरानन्‍द जी : धन्य है सत्पुरषों का संग || Dhanya Hai Satpurushon ka Sang

कथा प्रसंग 002 : स्‍वामी राजेश्‍वरानन्‍द जी : धन्य है सत्पुरषों का संग  || Dhanya Hai Satpurushon ka Sang



एक महात्मा थे श्री माधव दास जी महाराज, श्री वृंदावन धाम में निवास किया करते थे। एक बार श्री जगन्नाथ पुरी जा कर रहे तो वे नित्य भिक्षा के लिए जाते थे। 


नारायण हरि – भिक्षां देहि कहकर भिक्षा मांगा करते थे, लोग अपना सौभाग्य मानते थे।  संत को भिक्षा देकर अपने धन-धान्य को धन्य करते थे। और एक वृद्धा माता कुछ नहीं देती थी गाली देती थी कहती  निठल्ले कुछ नहीं किया जाता और निकल आते हैं दे दो दे दे दो।


और महात्मा भी बड़े अद्भुत उसके घर जरूर जाते, किसी ने उनसे कहा कि बाबा अरे जब वह कुछ नहीं देती है उनके यहां क्यों जाते हो?


माधव दास जी बोले अरे वह वो चीज देती है जो कोई नहीं देता, गाली तो देती है कुछ ना कुछ तो देती है। 


खोद खाद धरती से काट कूट वन राय। 

कुटिल वचन साधु सहे सबसे सहा न जाए।। 


अच्छा बृद्धा माता के बेटे का विवाह हो गया था, बेटे के घर किसी बेटे का जन्म नहीं हुआ था। पौत्र का जन्म नहीं हुआ था इसलिए वह वृद्धा माता बड़ी दुखी रहती थी। 


महात्मा को देखकर गाली देती एक दिन सदा की तरह माधव दास जी उसके दरवाजे पर गए। कहने लगी तू फिर आ गया निठल्ले?

 

कपड़े का पोता लेकर हाथ में पुताई का काम कर रही थी, कीचड़ से सना हुआ वह वस्त्र खंड महात्मा को देखकर वृद्धा माता ने फेंककर उस पोता से महात्मा को मारा। 


वह वस्त्र खंड महात्मा के जाकर छाती से लगा और नीचे गिर गया, बुढ़िया ने मार तो दिया लेकिन डर गई कहीं बाबा श्राप न दे दे?


लेकिन महात्मा मुस्कुराने लगे और वह कपड़े का वस्त्र खंड उठा कर बोले चल मैया तूने कुछ दिया तो, लेकिन अब हम भी बिना दिए नहीं जाएंगे। 


संत माधव दास भी उत्तर इसी का देगा। 

पोता अगर दिया है तो जा पोता तुझे मिलेगा।। 


संत की बात मिथ्या नहीं जाती भगवान भी संतो की बात की मर्यादा रखते हैं। भगवान संत की मर्यादा रखे उसके घर पोता का जन्म हुआ। 


वह कहती थी- 

पोता दियो ना प्रेम से रिसिवस दीन्हो मार। 

ऐसे पुण्यन सो सखी मेरे पोता खेलत द्वार।।

जो मैं ऐसे संत को देती प्रेम प्रसाद। 

तो घर में सुत उपजते जैसे ध्रुव प्रहलाद।।


माधव दास जी उस मिट्टी कीचड़ से सने हुए वस्त्र को लेकर आए जल से धुला उसके मटमैलेपन को दूर किया। कंकड़ों को धोया साफ कर दिया। 


और फिर घी में डाल दिया और घी से निकाल कर बत्ती बना दी और फिर दीया जला दी और मंदिर पर रख दिया उसको और वह वस्त्र खंड अपने सौभाग्य की सराहना करते हुए कह रहा है-

धन्य है सत पुरुषों का संग, 

बदल देता है जीवन का रंग। 


पोता में रोता था जहां रक्त और पीर, 

चौकी में फेरा जाता था मरते थे लाखों जीव। 


आ गया था जीवन से तंग, 

धन्य है सत पुरुषों का संग।  


और महात्मा ने क्या किया मिट्टी कंकड़ साफ कर दिया तो अब की दशा क्या है।  


झूला करूँ आरती ऊपर गरुण करे गुनगाथ।  

देते हैं मेरे प्रकाश में दरसन दीनानाथ।। 


आशीषें अंधे और अपंग 

धन्य है सत्पुरषों का संग। 


जिंदगी बदल दी केवल महात्मा के सत्संग ने अब मैं आरती के ऊपर झूलता हूं और मेरे प्रकाश में भगवान के दर्शन लोगों को होता है। अपंग अंधे आशीष देते हैं, भक्त उमंग में भरकर मुझे स्वीकार करते हैं जिंदगी बदल दी केवल महात्मा के सत्संग ने। 


धन्य है सत्पुरषों का संग


सीताराम सीताराम सीताराम कहिये || Sitaram Sitaram Sitaram Kahiye || Shri Ram Chandra Ji Ka Bhajan Lyrics in Hindi 

सीताराम सीताराम सीताराम कहिये 

जाहे बिधि राखे राम वाहि बिधि रहिये 

सीताराम सीताराम सीताराम कहिये 

जाहे बिधि राखे राम वाहि बिधि रहिये 


मुख में हो राम नाम 

राम सेवा हाथ में 

मुख में हो राम नाम 

राम सेवा हाथ में

तू अकेला नहीं प्‍यारे 

राम जी तेरे साथ में

विधि का विधान जान 

हानि लाभ सहिये 

विधि का विधान जान 

हानि लाभ सहिये 

जाहे बिधि राखे राम 

वाहि बिधि रहिये 


सीताराम सीताराम सीताराम कहिये 

जाहि बिधि राखे राम वाहि बिधि रहिये 


किया अभिमान तो फिर 

मान नहीं पायेगा

किया अभिमान तो फिर 

मान नहीं पायेगा

होगा प्‍यारे वही जो

श्रीराम जी को भायेगा

होगा प्‍यारे वही जो

श्रीराम जी को भायेगा

फल आशा त्‍याग 

शुभ काम करते रहिये

फल आशा त्‍याग 

शुभ काम करते रहिये

जाहे बिधि राखे राम ताहि बिधि रहिये 

सीताराम सीताराम सीताराम कहिये 

जाहि बिधि राखे राम वाहि बिधि रहिये 


जिन्‍दगी की डोर सौंप 

हाथ दीना नाथ के

जिन्‍दगी की डोर सौंप 

हाथ दीना नाथ के

महलों में राखे चाहे

झोपडी में वास दे

महलों में राखे चाहे

झोपडी में वास दे


धन्‍यवाद निर्विवाद 

राम राम कहिये 

धन्‍यवाद निर्विवाद 

राम राम कहिये 

जाहे विधि राखे राम वाहि बिधि रहिये 

सीताराम सीताराम सीताराम कहिये

जाहे विधि राखे राम वाहि बिधि रहिये


आशा एक राम जी से 

दूजी आसा छोड दे

आशा एक राम जी से 

दूजी आसा छोड दे

नाता एक राम जी से 

दूजा नाता तोड दे

नाता एक राम जी से 

दूजा नाता तोड दे

साधु संग राम रंग

अंग अंग रंगिये

काम रस त्‍याग प्‍यारे 

राम रस पगिये 

सीताराम सीताराम सीताराम कहिये 

जाहे बिधि राखे राम वाहि विधि रहिये 

सीताराम सीताराम सीताराम कहिये 

जाहे बिधि राखे राम वाहि विधि रहिये

जाहे बिधि राखे राम वाहि विधि रहिये

जाहे बिधि राखे राम वाहि विधि रहिये

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मेरी अंखियों के सामने ही रहना || Meri Akhiyo Ke Samne Hi Rahna || Devi Geet Lyrics in Hindi & English

मेरी अंखियों के सामने ही रहना || Meri Akhiyo Ke Samne Hi Rahna || Devi Geet Lyrics in Hindi & English ** **  मेरी अखियों के सामने ही रहन...