कथा प्रसंग 002 : स्वामी राजेश्वरानन्द जी : धन्य है सत्पुरषों का संग || Dhanya Hai Satpurushon ka Sang
एक महात्मा थे श्री माधव दास जी महाराज, श्री वृंदावन धाम में निवास किया करते थे। एक बार श्री जगन्नाथ पुरी जा कर रहे तो वे नित्य भिक्षा के लिए जाते थे।
नारायण हरि – भिक्षां देहि कहकर भिक्षा मांगा करते थे, लोग अपना सौभाग्य मानते थे। संत को भिक्षा देकर अपने धन-धान्य को धन्य करते थे। और एक वृद्धा माता कुछ नहीं देती थी गाली देती थी कहती निठल्ले कुछ नहीं किया जाता और निकल आते हैं दे दो दे दे दो।
और महात्मा भी बड़े अद्भुत उसके घर जरूर जाते, किसी ने उनसे कहा कि बाबा अरे जब वह कुछ नहीं देती है उनके यहां क्यों जाते हो?
माधव दास जी बोले अरे वह वो चीज देती है जो कोई नहीं देता, गाली तो देती है कुछ ना कुछ तो देती है।
खोद खाद धरती से काट कूट वन राय।
कुटिल वचन साधु सहे सबसे सहा न जाए।।
अच्छा बृद्धा माता के बेटे का विवाह हो गया था, बेटे के घर किसी बेटे का जन्म नहीं हुआ था। पौत्र का जन्म नहीं हुआ था इसलिए वह वृद्धा माता बड़ी दुखी रहती थी।
महात्मा को देखकर गाली देती एक दिन सदा की तरह माधव दास जी उसके दरवाजे पर गए। कहने लगी तू फिर आ गया निठल्ले?
कपड़े का पोता लेकर हाथ में पुताई का काम कर रही थी, कीचड़ से सना हुआ वह वस्त्र खंड महात्मा को देखकर वृद्धा माता ने फेंककर उस पोता से महात्मा को मारा।
वह वस्त्र खंड महात्मा के जाकर छाती से लगा और नीचे गिर गया, बुढ़िया ने मार तो दिया लेकिन डर गई कहीं बाबा श्राप न दे दे?
लेकिन महात्मा मुस्कुराने लगे और वह कपड़े का वस्त्र खंड उठा कर बोले चल मैया तूने कुछ दिया तो, लेकिन अब हम भी बिना दिए नहीं जाएंगे।
संत माधव दास भी उत्तर इसी का देगा।
पोता अगर दिया है तो जा पोता तुझे मिलेगा।।
संत की बात मिथ्या नहीं जाती भगवान भी संतो की बात की मर्यादा रखते हैं। भगवान संत की मर्यादा रखे उसके घर पोता का जन्म हुआ।
वह कहती थी-
पोता दियो ना प्रेम से रिसिवस दीन्हो मार।
ऐसे पुण्यन सो सखी मेरे पोता खेलत द्वार।।
जो मैं ऐसे संत को देती प्रेम प्रसाद।
तो घर में सुत उपजते जैसे ध्रुव प्रहलाद।।
माधव दास जी उस मिट्टी कीचड़ से सने हुए वस्त्र को लेकर आए जल से धुला उसके मटमैलेपन को दूर किया। कंकड़ों को धोया साफ कर दिया।
और फिर घी में डाल दिया और घी से निकाल कर बत्ती बना दी और फिर दीया जला दी और मंदिर पर रख दिया उसको और वह वस्त्र खंड अपने सौभाग्य की सराहना करते हुए कह रहा है-
धन्य है सत पुरुषों का संग,
बदल देता है जीवन का रंग।
पोता में रोता था जहां रक्त और पीर,
चौकी में फेरा जाता था मरते थे लाखों जीव।
आ गया था जीवन से तंग,
धन्य है सत पुरुषों का संग।
और महात्मा ने क्या किया मिट्टी कंकड़ साफ कर दिया तो अब की दशा क्या है।
झूला करूँ आरती ऊपर गरुण करे गुनगाथ।
देते हैं मेरे प्रकाश में दरसन दीनानाथ।।
आशीषें अंधे और अपंग
धन्य है सत्पुरषों का संग।
जिंदगी बदल दी केवल महात्मा के सत्संग ने अब मैं आरती के ऊपर झूलता हूं और मेरे प्रकाश में भगवान के दर्शन लोगों को होता है। अपंग अंधे आशीष देते हैं, भक्त उमंग में भरकर मुझे स्वीकार करते हैं जिंदगी बदल दी केवल महात्मा के सत्संग ने।
धन्य है सत्पुरषों का संग
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये || Sitaram Sitaram Sitaram Kahiye || Shri Ram Chandra Ji Ka Bhajan Lyrics in Hindi
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये
जाहे बिधि राखे राम वाहि बिधि रहिये
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये
जाहे बिधि राखे राम वाहि बिधि रहिये
मुख में हो राम नाम
राम सेवा हाथ में
मुख में हो राम नाम
राम सेवा हाथ में
तू अकेला नहीं प्यारे
राम जी तेरे साथ में
विधि का विधान जान
हानि लाभ सहिये
विधि का विधान जान
हानि लाभ सहिये
जाहे बिधि राखे राम
वाहि बिधि रहिये
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये
जाहि बिधि राखे राम वाहि बिधि रहिये
किया अभिमान तो फिर
मान नहीं पायेगा
किया अभिमान तो फिर
मान नहीं पायेगा
होगा प्यारे वही जो
श्रीराम जी को भायेगा
होगा प्यारे वही जो
श्रीराम जी को भायेगा
फल आशा त्याग
शुभ काम करते रहिये
फल आशा त्याग
शुभ काम करते रहिये
जाहे बिधि राखे राम ताहि बिधि रहिये
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये
जाहि बिधि राखे राम वाहि बिधि रहिये
जिन्दगी की डोर सौंप
हाथ दीना नाथ के
जिन्दगी की डोर सौंप
हाथ दीना नाथ के
महलों में राखे चाहे
झोपडी में वास दे
महलों में राखे चाहे
झोपडी में वास दे
धन्यवाद निर्विवाद
राम राम कहिये
धन्यवाद निर्विवाद
राम राम कहिये
जाहे विधि राखे राम वाहि बिधि रहिये
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये
जाहे विधि राखे राम वाहि बिधि रहिये
आशा एक राम जी से
दूजी आसा छोड दे
आशा एक राम जी से
दूजी आसा छोड दे
नाता एक राम जी से
दूजा नाता तोड दे
नाता एक राम जी से
दूजा नाता तोड दे
साधु संग राम रंग
अंग अंग रंगिये
काम रस त्याग प्यारे
राम रस पगिये
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये
जाहे बिधि राखे राम वाहि विधि रहिये
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये
जाहे बिधि राखे राम वाहि विधि रहिये
जाहे बिधि राखे राम वाहि विधि रहिये
जाहे बिधि राखे राम वाहि विधि रहिये
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