रविवार, 31 अगस्त 2025

सोहर गीत : अंगना बटोरली भउजी का भावार्थ और महत्व | Sohar Geet : Angna Batorli Bhauji ka Bhavarth aur Mahatva

सोहर गीत : अंगना बटोरली भउजी का भावार्थ और महत्व | Sohar Geet : Angna Batorli Bhauji ka Bhavarth aur Mahatva

सोहर गीत : अंगना बटोरली भउजी
परिचय
भारतीय लोकजीवन की आत्मा उसके लोकगीत हैं। लोकगीत केवल गाने के लिए नहीं होते, बल्कि वे समाज की सोच, परंपराओं और संस्कारों को संजोकर रखते हैं। सोहर गीत (Sonhar/Sohar Geet) बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और आसपास के क्षेत्रों में संतान-जन्म के अवसर पर गाए जाने वाले मंगलगीत हैं। इनका मुख्य उद्देश्य नवजात शिशु के आगमन पर उल्लास व्यक्त करना और घर-आँगन में मंगलकामना करना होता है। साथी ही ये गीत ईश्‍वर के प्रति आभार व्‍यक्‍त करने का साधन भी होते हैं। 
ऐसे ही एक प्रसिद्ध सोहर गीत की पंक्तियाँ हैं –
अँगना बटोरली भउजी हो बढ़इतिन हो ना।
लचिआ गोबरवा बिनि लिअवतू हो ना…
यह गीत केवल शब्दों का मेल नहीं, बल्कि गाँव की स्त्रियों के श्रम, ईश्वर की कृपा और नवजीवन के स्वागत की अभिव्यक्ति है। आइए विस्तार से इसका भावार्थ और सांस्कृतिक महत्व समझते हैं।
गीत का संक्षिप्त परिचय एवं भावार्थ
यह सोहर गीत गाँव के वातावरण और स्त्रियों के दैनिक जीवन से शुरू होता है। भउजी (भाभी) आँगन बटोर रही हैं। लचिया (बहन या गाँव की युवती) गोबर बीनने गई है। वह जंगल, तालाब और चरवाही का चक्कर लगाती है। अचानक उसके जीवन में दैवीय गर्भाधान का संकेत मिलता है। आगे गीत में शिशु जन्म की भविष्यवाणी और उस शिशु के लिए शुभकामनाएँ दी जाती हैं।
गीत की शुरुआत गाँव के आम दृश्य से होती है। एक तरफ भाभी आँगन साफ कर रही हैं, तो दूसरी तरफ लचिया गोबर बीन रही है। इससे ग्रामीण जीवन की सादगी और श्रमशीलता प्रकट होती है। लचिया का दिनचर्या अत्‍यन्‍त कठिन है। उसे पशुओं को चराने के लिए जंगल भी जाना होता है। एक बार जंगल गई, दूसरी बार भी और तीसरी बार मवेशी चराने गई। इससे स्त्रियों के कठोर श्रम और प्रकृति से गहरे संबंध का चित्रण मिलता है। लचिया टोकरी भरकर गोबर ले आई। फिर प्यास लगने पर सुबह तालाब से पानी पीने गई। पानी यहाँ जीवन और पवित्रता का प्रतीक है। लचिया ने पहला और दूसरा घूँट पानी पिया, लेकिन तीसरे घूँट के साथ ही वह गर्भवती हो गई। यह दैवीय कृपा का प्रतीक है। जब लचिया लौटती है तो गाँव की गलियों से होकर आती है। सबकी नज़र उस पर पड़ती है। यह समाज की जिज्ञासा और स्त्रियों की स्थिति को भी दर्शाता है। ईश्वर की ज्योति घर आती है। राम दरवाज़े पर बैठे हैं और मन को मोह रहे हैं। यहाँ भगवान राम का स्मरण दर्शाता है कि संतान-जन्म केवल जैविक नहीं बल्कि दैवीय घटना है। सब पूछते हैं – यह कौन है? जवाब आता है – यह तो मेरी बहन है। कहा जाता है  हाँ, यही तुम्हारी बहन है, और अब वह गर्भवती है। गीत में आगे कहा गया है कि अगर बछड़ा जन्म लेगा, तो उसके लिए सोने का खूंटा और पगहा बनेगा। अगर बेटा जन्म लेगा, तो उसे नए वस्त्र पहनाए जाएँगे और उत्सव मनाया जाएगा। यह अपने आपमें एक रहस्‍यात्‍मक सोहर के रूप में भी उजागर होता है। यहाँ पुत्र जन्म को अधिक महत्व दिया गया है। यह उस समय की पितृसत्तात्मक सोच और सामाजिक मान्यता को दर्शाता है।
सोहर गीत की विशेषताएँ
यह हमेशा समूह में गाए जाते हैं।
गीत गाने वाली प्रायः महिलाएँ होती हैं।
इसमें हास्य, व्यंग्य, शुभकामना और लोककथा सबका मेल होता है।
हर सोहर गीत में कहीं न कहीं भगवान का स्मरण होता है।
इन गीतों से घर का वातावरण आनंदमय और पवित्र बनता है।
सोहर गीतों में परिवार के सभी सदस्‍यों का नाम लेकर भी गाना गाने की परम्‍परा रही है। 
सोहर गीतों के माध्‍यम से ईश्‍वर के प्रति आभार भी व्‍यक्‍त किया जाता है।  
निष्कर्ष
सोहर गीत अँगना बटोरली भउजी… केवल संतान-जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारतीय ग्रामीण जीवन, स्त्रियों की भूमिका, सामाजिक मान्यता और धार्मिक विश्वास का सजीव चित्र है। इसमें श्रम और साधना है। इसमें गर्भाधान और ईश्वर की कृपा है। इसमें संतान-जन्म की खुशी और भविष्य की शुभकामनाएँ हैं। यही कारण है कि सोहर गीत आज भी गाँवों में उतने ही उत्साह से गाए जाते हैं, जितने सदियों पहले गाए जाते थे।
हम आशा करते हैं कि यह सोहर गीत आपको अवश्‍य पसन्‍द आयेगा। साथ ही अगर आपके पास भी आपके क्षेत्र में गाया जाने वाला कोई सोहर गीत हो तो हमें अवश्‍य उपलब्‍ध करायें। हम उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे। यह सोहर गीत हमें श्री कमल सिंह जी के ब्‍लाग ''पूर्वांचल के श्रम लोकगीत'' से प्राप्‍त हुआ है। इस लोकगीत के संकलन के लिए हम श्री कमल सिंह जी के प्रति अपना आभार व्‍यक्‍त करते हैं। 
तो आइये अब इस प्रसिद्ध सोहर गीत का आनन्‍द लेते हैं। सोहर के बोल इस प्रकार हैं -
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अँगना बटोरली भउजी हो बढ़इतिन हो ना।
लचिआ गोबरवा बिनि लिअवतू हो ना।
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एक बन गइली हो लाची अवरू दुसरवा हो ना।
लचिआ तीसर बनवाँ गइआ चरवहवा हो ना।
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गोबराहि बीनि ये लचिआ खाँची समुअवली हो ना।
राम लगिहों गइली तड़की पिअसिआ हो ना।
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एक बन गइली हो लचिआ अवरू दूसरवाँ हो ना।
लचिआ तीसर बनवाँ ताके पोखरवा हो ना।
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लउकहि के लउके हो लचिया गउवाँ के अरड़ियाँ हो ना।
लचिया चलि हो भइली गउवाँ के अरड़ियाँ हो ना।
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एक चिरुवा पिअली हो लचिआ अवरू दूसरवाँ हो ना।
लचिआ तीसर चिरुआ रहि गइलय गरभवा हो ना।
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गोबरहिं लेइ हो लचिआ घर के लवटली हो ना।
लचिआ जाइ सुतेली रंग महलिआ हो ना।
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हरि जोति अइलय कुदारि मारी अइलय हो ना।
रामा बइठयल डेवढ़िआ मनवाँ मारी हो ना।
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सबके त देखों ये धनियाँ भर से अँगनवाँ हो ना।
धनियाँ नाहीं रे लउकय लाची मोर बहिनियाँ हो ना।
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लाची तोर बहिनियाँ ये राजा गरभे मातल हो ना।
राजा जाइ के सुतेली रंग महलिआ हो ना।
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एतनी बचनियाँ हो धनियाँ से सुनहीं ना पवलय हो ना।
भइआ बसवा हो पइठी काँटे कइनियाँ हो राम।
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एक सिटकुन मरलय ये भइआ अवरू दुसरवाँ हो ना।
लचिआ तीसरे में घूमें करवटिआ हो ना।
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किआ तुहूँ भुललू ये बहिनी भइआ से भतिजवा हो ना।
बहिनी किआ तुहूँ भुललू गउवाँ के गोइड़वाँ हो ना।
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नाहीं हम भुलली हो भइआ, भइआ से भतिजवा हो ना।
भइआ नाहीं भुलली गउवाँ के गोइड़वाँ हो ना।
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अगना बटोरती भउजी बढ़इतिन हो ना।
लचिआ गोबरवा हो बिनि लेअवतू हो ना।
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एक वन गइली हो भइआ अवरु दुसरवाँ हो ना।
भइआ तीसरे बनवाँ गइआ चरवहवा हो ना।
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गोबरा हि बीनी हो भइआ खाँची समुअवती हो ना।
भइआ लागी गइली तड़की पिअसिआ हो ना।
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पोखरा के भीटे भइआ तकली ताल पोखरवा हो ना।
भइआ कतहूँ ना लउकय ताल पोखरवा हो ना।
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लउकहि के लउकय भइआ गउवाँ के अरड़ियाँ ना।
भइआ चली हो भइली गउवाँ के अरड़ियाँ हो ना।
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एक चिरुआ पिअली हो भइआ अवरू दुसरवाँ हो ना।
भइआ तीसर चिरुआ रहि गइलय गरभवा हो ना।
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जऊँ तोरे लचिआ हो बछरू जनमिहय हो ना।
लचिआ सोनवाँ के मढ़इबय उनकर खुरवा हो ना।
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जऊँ तोरे लचिआ रे बेटवा जनमिहैं हो ना।
लचिआ लुगरी पहिराई घर निसरबय हो ना।
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जब तोरे लचिआ रे बछरू जनमिहय हो ना।
लचिआ सोनवाँ के बनवइबय उनकर पगहा हो ना।
लचिआ सोनवाँ के गड़इबय उनकर खुटवा हो ना।
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जऊँ तोरे लचिआ रे बेटवा जनमिहय हो ना।
लचिआ देसवा से तोहके निसरबय हो ना।
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#सोहर गीत : अंगना बटोरली भउजी का भावार्थ और महत्व | Sohar Geet : Angna Batorli Bhauji ka Bhavarth aur Mahatva

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Angna batorli bhauji ho badhaitin ho na.
Lachiya gobarwa bini liavatu ho na.
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Ek ban gaili ho lachi avaru dusarwa ho na.
Lachiya teesra banwa gaiya charvaha ho na.
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Gobrahhi bini ye lachi khanchi samuawali ho na.
Ram lagihon gaili tadki piasiya ho na.
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Ek ban gaili ho lachi avaru dusarwa ho na.
Lachiya teesra banwa take pokharwa ho na.
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Laukahi ke lauke ho lachiya gauwa ke aradiya ho na.
Lachiya chali ho bhaili gauwa ke aradiya ho na.
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Ek chirwa piali ho lachiya avaru dusarwa ho na.
Lachiya teesra chirwa rahi gailay garbhwa ho na.
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Gobrah hi leyi ho lachiya ghar ke lawatli ho na.
Lachiya jai suteli rang mahalia ho na.
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Hari jyoti ailay kudari maari ailay ho na.
Rama baithayal dewdhiya manwa maari ho na.
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Sabke ta dekho ye dhaniya bhar se angnawa ho na.
Dhaniya nahi re laukay lachi mor bahiniya ho na.
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Lachi tor bahiniya ye raja garbhe matal ho na.
Raja jai ke suteli rang mahalia ho na.
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Etni bachaniya ho dhaniya se sunhin na pvalay ho na.
Bhaiya baswa ho paithi kaante kainiya ho Ram.
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Ek sitkun marlay ye bhaiya avaru dusarwa ho na.
Lachiya teesre me ghoome karwatiya ho na.
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Kia tuhu bhullalu ye bahini bhaiya se bhatijwa ho na.
Bahini kia tuhu bhullalu gauwa ke goidwawa ho na.
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Nahi hum bhullali ho bhaiya, bhaiya se bhatijwa ho na.
Bhaiya nahi bhullali gauwa ke goidwawa ho na.
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Agna batorati bhauji badhaitin ho na.
Lachiya gobarwa ho bini leavatu ho na.
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Ek ban gaili ho bhaiya avaru dusarwa ho na.
Bhaiya teesre banwa gaiya charvaha ho na.
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Gobrah hi bini ho bhaiya khanchi samuawati ho na.
Bhaiya lagi gaili tadki piasiya ho na.
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Pokhara ke bhite bhaiya takli taal pokharwa ho na.
Bhaiya katahu na laukay taal pokharwa ho na.
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Laukahi ke lauke bhaiya gauwa ke aradiya na.
Bhaiya chali ho bhaili gauwa ke aradiya ho na.
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Ek chirwa piali ho bhaiya avaru dusarwa ho na.
Bhaiya teesra chirwa rahi gailay garbhwa ho na.
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Jau tore lachiya ho bachhru janmihay ho na.
Lachiya sonwa ke madhaiyb unkar khurwa ho na.
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Jau tore lachiya re betwa janmihain ho na.
Lachiya lugari pahirayi ghar nisarbey ho na.
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Jab tore lachiya re bachhru janmihay ho na.
Lachiya sonwa ke banwaibey unkar pagha ho na.
Lachiya sonwa ke gadaibey unkar khutwa ho na.
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Jau tore lachiya re betwa janmihay ho na.
Lachiya deswa se tohke nisarbey ho na.
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बुधवार, 13 अगस्त 2025

मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो | Sohar Geet Lyrics in Hindi and English | More Ram Lihe Avtar

मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो | Sohar Geet Lyrics in Hindi and English | More Ram Lihe Avtar 

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भारतीय लोकसंस्कृति की पहचान उसके विविध और समृद्ध लोकगीतों से होती है। प्रत्येक प्रदेश के लोकगीतों में उस क्षेत्र की भाषा, रीति-रिवाज, सामाजिक जीवन और भावनाओं की झलक मिलती है। उत्तर भारत के भोजपुरी, अवधी, मैथिली, मगही, ब्रजभाषा और अन्य बोलियों में प्रचलित सोहर लोकगीत ऐसे ही लोकप्रिय गीत हैं जो विशेष रूप से शिशु जन्म के अवसर पर गाए जाते हैं। “सोहर” शब्द का अर्थ है सुख, आनंद या हर्ष। जब परिवार में नन्हे मेहमान का आगमन होता है, तो गाँव की महिलाएँ एकत्र होकर ढोलक की थाप पर सोहर गाती हैं और इस हर्षोल्लास के क्षण को लोकधुनों से सजाती हैं।
सोहर लोकगीतों की परंपरा सदियों पुरानी है। इनका जन्म उस समय हुआ जब मौखिक परंपरा ही संस्कृति का मुख्य माध्यम थी। लिखित साहित्य से पहले लोग अपनी भावनाओं को गीत और संगीत के रूप में व्यक्त करते थे।
सोहर लोकगीत केवल एक पारंपरिक गीत शैली नहीं, बल्कि भारतीय लोकसंस्कृति की आत्मा हैं। इनमें परिवार के नए जीवन के स्वागत के साथ-साथ, पीढ़ियों की सांस्कृतिक स्मृति, धार्मिक विश्वास और मानवीय भावनाएँ सजीव रहती हैं। आधुनिक जीवन की गति ने इनकी मौलिकता को चुनौती दी है, लेकिन यदि हम इनका दस्तावेजीकरण, प्रचार-प्रसार और शिक्षा में समावेश करें, तो ये आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जीवित रह सकते हैं।
सोहर गाकर हम न केवल एक नवजात शिशु का स्वागत करते हैं, बल्कि अपने अतीत, अपनी मिट्टी और अपनी संस्कृति से भी जुड़ते हैं।
सोहर लोकगीत हमारी सांस्कृतिक जड़ों से हमें जोड़े रखते हैं। यह परंपरा केवल एक नवजात शिशु का स्वागत नहीं, बल्कि हमारे अतीत और हमारी पहचान का उत्सव है। बदलते समय में इन्हें संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इन गीतों की मिठास और सामूहिक आनंद का अनुभव कर सकें।
इसी कड़ी में हम प्रसिद्ध कवि श्री सत्‍यम दुबे शार्दूल जी के द्वारा लिखा गया सोहर गीत आपके साथ साझा कर रहे हैं। हमें पूर्ण विश्‍वास है कि यह सोहर गीत आपको अवश्‍य पसन्‍द आयेगा। हम आपसे यह भी आग्रह करते हैं कि यदि आपके पास भी सोहर गीत हों तो आप हमारे साथ साझा करें जिससे कि लोक परम्‍परा का प्रवाह आगामी पीढ़ी तक निरन्‍तर होता रहे। 
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मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो,
मोरे कुल मा भवा भिनुसार सोहर गावअ हो;
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मातु कौसल्या लाल निहारइँ,
नज़र न लागइ काजल काढइँ,
अमृत क छूटइ धार सोहर गावअ हो;
मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो|
मोरे कुल मा भवा भिनुसार सोहर गावअ हो
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मातु कैकेइ मगन होइ के नाचैं,
पंडित गण सब पोथी बाचैं,
अद्भुत भरा दरबार सोहर गावअ हो;
मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो,
मोरे कुल मा भवा भिनुसार सोहर गावअ हो
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मातु सुमित्रा मगन होइ के झूमैं,
राजा दशरथ विह्वल घूमैं,
दर्शन चहैं इक बार सोहर गावअ हो;
मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो
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जे जौन माँगइ तौनइ पावइ,
झोली दुन्नउ हाथ उठावइ,
खुलि ग बा कोषागार सोहर गावअ हो;
मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो
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सब बाभन के गऊ देत हैं,
सुखी रहइँ आशीष लेत हैं,
किन्नर के मोतियन हार सोर गावअ हो,
मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो
मोरे कुल मा भवा भिनुसार सोहर गावअ हो
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मोरे राम लिहे अवतार सोहर गावअ हो | Sohar Geet Lyrics in Hindi and English | More Ram Lihe Avtar 

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More rām lihe avatār sohar gāvaa ho,
More kul mā bhavā bhinusār sohar gāvaa ho;
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Mātu kausalyā lāl nihārai,
Najar n lāgai kājal kāḍhai,
Amṛut k chhūṭai dhār sohar gāvaa ho;
More rām lihe avatār sohar gāvaa ho|
More kul mā bhavā bhinusār sohar gāvaa ho
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Mātu kaikei magan hoi ke nāchaian,
Panḍit gaṇ sab pothī bāchaian,
Adbhut bharā darabār sohar gāvaa ho;
More rām lihe avatār sohar gāvaa ho,
More kul mā bhavā bhinusār sohar gāvaa ho
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Mātu sumitrā magan hoi ke zūmaian,
Rājā dasharath vihval ghūmaian,
Darshan chahaian ik bār sohar gāvaa ho;
More rām lihe avatār sohar gāvaa ho
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Je jaun māgai taunai pāvai,
Zolī dunnau hāth uṭhāvai,
Khuli g bā koṣhāgār sohar gāvaa ho;
More rām lihe avatār sohar gāvaa ho
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Sab bābhan ke gaū det haian,
Sukhī rahai āshīṣh let haian,
Kinnar ke motiyan hār sor gāvaa ho,
More rām lihe avatār sohar gāvaa ho
More kul mā bhavā bhinusār sohar gāvaa ho
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मंगलवार, 12 अगस्त 2025

श्रीराम वन गमन छंद | राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम | Ram Ji Ko Dekh Kar Bhul Baithe Sab Kaam Lyrics in Hindi and English

श्रीराम वन गमन छंद | राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम | Ram Ji Ko Dekh Kar Bhul Baithe Sab Kaam Lyrics in Hindi and English

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परिचय

‘श्री राम का वन गमन’ प्रकरण वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड का एक अत्यंत मार्मिक एवं महत्वपूर्ण भाग है। यह वह क्षण है जब अयोध्या के राजकुमार श्रीराम को पिता दशरथ द्वारा दिए गए वचन केअनुपालन में 14 वर्षों के वनवास पर जाना पड़ता है। इस घटना ने न केवल राम के जीवन को बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति, राजनीति और आदर्शों को गहराई से प्रभावित किया है। श्रीराम का वन गमन वचन की मर्यादा, त्याग, धर्म, कर्तव्य, प्रेम और मर्यादा का अद्वितीय उदाहरण है।

प्रसंग की पृष्ठभूमि:

अयोध्या के राजा दशरथ अपने जीवन के उत्तरार्ध में यह निर्णय लेते हैं कि वे अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को राजा घोषित करेंगे। यह समाचार अयोध्या में हर्ष और उल्लास का कारण बनता है। समस्त प्रजा राम के गुणों से परिचित थी - वे मर्यादापुरुषोत्तम, धर्मनिष्ठ, विनम्र, और न्यायप्रिय थे। लेकिन जब कैकेयी को यह बात ज्ञात होती है, तो उसकी दासी मंथरा उसे भड़काती है। मंथरा कैकेयी को यह विश्वास दिलाती है कि राम के राजा बनने के बाद भरत की स्थिति कमजोर हो जाएगी और कैकेयी का वर्चस्व समाप्त हो जाएगा। कैकेयी के मन में ईर्ष्या और मोह का बीज बोया जाता है, जो धीरे-धीरे क्रूर संकल्प में बदल जाता है।

कैकेयी के दो वरदान:

राजा दशरथ ने देवासुर संग्राम के समय कैकेयी को दो वरदान देने का वचन दिया था, जब कैकेयी ने युद्ध में उनकी प्राण-रक्षा की थी। अब कैकेयी उसी वचन को आधार बनाकर दशरथ से दो वर मांगती है- प्रथम भरत को राजगद्दी मिले एवं द्वितीय राम को 14 वर्षों का वनवास दिया जाए।

महाराज दशरथ यह सुनकर अचंभित और पीड़ित हो उठते हैं। वे राम को अत्यधिक प्रेम करते थे और कभी भी उनके बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते थे। वे कैकेयी से विनती करते हैं, परंतु कैकेयी अपने निर्णय पर अडिग रहती हैं। अंततः, वचनबद्ध दशरथ विवश होकर राम को बुलाकर यह कठोर आदेश सुनाते हैं।

श्रीराम की प्रतिक्रिया:

श्रीराम की प्रतिक्रिया अत्यंत शांत, संयमित और धर्मपूर्ण होती है। वे बिना किसी विरोध के, पिता के वचन की रक्षा के लिए वन जाने को तत्पर हो जाते हैं। यह क्षण श्रीराम के चरित्र की महानता को उजागर करता है। वे कहते हैं कि पितृवचन मानना मेरा धर्म है। राज्य मिले या न मिले, मुझे कोई मोह नहीं। राम के इस व्यवहार से स्पष्ट होता है कि वे सांसारिक सुखों से ऊपर हैं और उनके लिए सबसे बड़ा धर्म पिता की आज्ञा और वचन की मर्यादा है।

सीता और लक्ष्मण का साथ जाना:

जब राम वन जाने का निर्णय लेते हैं, तो सीता उनसे अनुरोध करती हैं कि वे भी साथ जाएंगी। राम उन्हें समझाते हैं कि वन का जीवन कठोर है, वहाँ सुख-सुविधाएँ नहीं हैं, परंतु सीता दृढ़ रहती हैं। वह कहती हैं कि जहाँ आप होंगे, वहीं मेरा वैभव है। आपके बिना यह महल भी मेरे लिए वन के समान है। लक्ष्मण भी अपने भ्राता की सेवा के लिए आग्रह करते हैं और कहते हैं कि वे भी साथ जाएंगे। इस प्रकार राम, सीता और लक्ष्मण तीनों वनवास के लिए प्रस्थान करते हैं।

अयोध्या की प्रतिक्रिया:

राम का वन गमन सुनकर पूरी अयोध्या शोकमग्न हो जाती है। नगरवासी राम से अत्यधिक प्रेम करते थे। जब उन्हें ज्ञात होता है कि राम को वनवास मिला है तो वे विलाप करने लगते हैं और राम के साथ वन जाने की इच्छा जताते हैं। लेकिन राम उन्हें समझाकर वापस भेज देते हैं।

राजा दशरथ पुत्र वियोग में दुखी होकर धीरे-धीरे अपनी इन्द्रियों को खोने लगते हैं। राम के जाने के कुछ समय बाद वे ‘राम’ का नाम लेते-लेते प्राण त्याग देते हैं।

राम का वन गमन भारत के लोकजीवन में एक गहरे सांस्कृतिक बोध के रूप में रच-बस गया है। तुलसीदास जी ने इसे "रामचरितमानस" में अत्यंत भावपूर्ण रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विभिन्न भागों में रामलीला, भजन, लोकगीतों और कथाओं में इस प्रसंग को भावुकता और आदर्श के रूप में चित्रित किया जाता है। आज भी जब राम का नाम लिया जाता है, तो उनके वन गमन की स्मृति हृदय को भावविभोर कर देती है। यह केवल एक कथा नहीं, बल्कि जीवन के उच्चतम मूल्यों का प्रतीक है और यही कारण है कि श्रीराम का वन गमन भारतीय मानस में युगों-युगों तक अमर रहेगा।

इसी कड़ी में प्रतापगढ़ के प्रसिद्ध कवि श्री सत्‍यम दुबे शार्दूल जी ने भी अपनी लेखनी श्रीराम वन गमन पर चलायी है और एक अत्‍यन्‍त ही सुन्‍दर छन्‍द की रचना की है। हम श्री सत्‍यम दुबे जी की इस दिव्‍य रचना को यहॉं प्रस्‍तुत कर रहे हैं, जो इस प्रकार है- 
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राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम,
अपलक सोच रहे आता कौन धीर है;
आता कौन धीर वीर श्याम वर्ण है शरीर;
हाथ में धनुष लिए पीछे को तुणीर है,
तुणीर में चार बाण चारों करें झनकार;
अधर की वाणी सम बोलते कि वीर हैं,
वीर एक पीछे पीछे शांत चित्त मौन धारे,
शांत चित्त कह रहा देव सशरीर है। 
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देव सशरीर किंतु मस्तक पर मुकुट नहीं,
रथ की तो बात और पादुका विहीन हैं;
पादुका विहीन मन कैसे कहे देव मुनि,
देव मुनि नहीं किंतु लगते नवीन हैं;
लगते नवीन तन पावन पुनीत मन,
जोगी जैसा वेश नहीं किसी के अधीन हैं;
किसी राजपुंज के प्रकाशमान बिंब तीन,
धर्म ध्वजा वस्त्र धारे लगते प्रवीण हैं।
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लगते प्रवीण भाई पूछो तनी नाम गांव,
आज रुक जाएं यहीं जाना यदि दूर है;
दूर दूर जंगलों में भटकेंगे कहां यहां,
जंगलों में जीव-जंतु बसे भरपूर हैं;
बसे भरपूर खायें सोयें रहें प्रात जाएं,
नगर यहां से अभी बहुत सुदूर है;
बहुत दिनों के बाद आया कोई आज यहां,
राम की कृपा से उसे रोकना ज़रूर है।
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श्रीराम वन गमन छंद | राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम | Ram Ji Ko Dekh Kar Bhul Baithe Sab Kaam Lyrics in Hindi and English
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Rām jī ko dekh kar bhūl baiṭhe sab kāma,
Apalak soch rahe ātā kaun dhīr hai;
Ātā kaun dhīr vīr shyām varṇa hai sharīra;
Hāth mean dhanuṣh lie pīchhe ko tuṇīr hai,
Tuṇīr mean chār bāṇ chāroan karean jhanakāra;
Adhar kī vāṇī sam bolate ki vīr haian,
Vīr ek pīchhe pīchhe shāanta chitta maun dhāre,
Shāanta chitta kah rahā dev sasharīr hai 
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Dev sasharīr kiantu mastak par mukuṭ nahīan,
Rath kī to bāt aur pādukā vihīn haian;
Pādukā vihīn man kaise kahe dev muni,
Dev muni nahīan kiantu lagate navīn haian;
Lagate navīn tan pāvan punīt mana,
Jogī jaisā vesh nahīan kisī ke adhīn haian;
Kisī rājapuanja ke prakāshamān bianba tīna,
Dharma dhvajā vastra dhāre lagate pravīṇ haian
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Lagate pravīṇ bhāī pūchho tanī nām gāanva,
Āj ruk jāean yahīan jānā yadi dūr hai;
Dūr dūr jangaloan mean bhaṭakeange kahāan yahāan,
Jangaloan mean jīva-jantu base bharapūr haian;
Base bharapūr khāyean soyean rahean prāt jāean,
Nagar yahāan se abhī bahut sudūr hai;
Bahut dinoan ke bād āyā koī āj yahāan,
Rām kī kṛupā se use rokanā jrūr hai
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शनिवार, 17 मई 2025

गये जैमन हित ज्यौनार जनक नृपके अँगना | Lokgeet Gari Geet Lyrics in Hindi and English | Gaye Jaiman Hit Jyonar Janak Nrip Ke Angana

गये जैमन हित ज्यौनार जनक नृपके अँगना | Lokgeet Gari Geet Lyrics in Hindi and English | Gaye Jaiman Hit Jyonar Janak Nrip Ke Angana

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Lokgeet Gari Geet Lyrics in Hindi and English
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यह अवधी भाषा में रचित एक सुंदर लोकगीत है जो श्रीराम के विवाह के अवसर पर जनकपुरी में हुई जयमाला और ज्यौनार (भोजन) की आनंदमयी छवि प्रस्तुत करता है। गीत में जनक के आँगन में आये बारातियों के स्वागत, भोजनों की विविधता, और पारंपरिक रीति-नीति का जीवंत वर्णन है।
यह गीत केवल भोजन का वर्णन नहीं है, बल्कि आतिथ्य, संस्कृति, परंपरा और सौहार्द्र की मिसाल है। इस तरह के लोकगीत भारतीय समाज के लोक-संवेदनाओं और जीवनशैली को जीवंत बनाए रखते हैं।
भारतीय लोक परंपरा में शादी-ब्याह के गीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक इतिहास के जीवंत दस्तावेज होते हैं। अवधी क्षेत्र का प्रसिद्ध लोकगीत “गए जैमन हित ज्यौनार” जनकपुर में भगवान राम के विवाह के अवसर पर हुए भोज का ऐसा ही एक मनोहारी चित्रण प्रस्तुत करता है।
यह गीत सिर्फ भोजन की विविधता नहीं, बल्कि आतिथ्य, शिष्टाचार और उत्सव की भावना को भी दर्शाता है। आइए इस गीत को विस्तार से समझते हैं।
यह लोकगीत श्रीराम विवाह के अवसर पर आयोजित भव्य भोज (ज्यौनार) का सुंदर वर्णन करता है। जनकपुर के आँगन में राजा दशरथ सहित राम-लक्ष्मण, भरत-शत्रुघ्न, गुरु वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र और पूरी बारात का स्वागत पारंपरिक अवधी भोज से किया जाता है।
यह भोजन मात्र स्वाद का विषय नहीं था, बल्कि संपूर्ण आनंद और आतिथ्य संस्कार का प्रतिनिधित्व करता है।
लोकगीत हमारी सभ्यता की आत्मा हैं। “गए जैमन हित ज्यौनार” न केवल एक गीत है, बल्कि भारतीय संस्कृति की वह धार्मिक, सामाजिक और भावनात्मक विरासत है, जो पीढ़ियों तक चली आ रही है। ऐसे गीतों को सहेजना और साझा करना हमारी जिम्मेदारी है।
"ज्यौनार" शब्द का मतलब भोज से है, विशेषकर वैवाहिक अवसरों पर होने वाला सत्कार भोज।
क्या आपके पास भी कोई पारंपरिक विवाह गीत है? कमेंट करके साझा करें!
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गये जैमन हित ज्यौनार
जनक नृपके अँगना।
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राम लषन अरु भरत शत्रुहन 
अवधपुरी भूपाल
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गुरु वशिष्ठ औ कौशिक बैठे 
जैमनहित तत्काल
बराती बैठे अँगना ॥
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गये जैमन हित ज्यौनार
जनक नृपके अँगना।
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पातरि परसिके दौना परसे 
लोटा और गिलास। 
पूरी कचौरी दही परस के 
धरौ अचार सुपास॥ 
बहुत आनन्द माना ॥
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गये जैमन हित ज्यौनार
जनक नृपके अँगना।
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सेब इमरती बालूसाही 
गुजिया नुकती दार । 
मधु मेवा पकमान मिठाई 
व्यंजन परस समार॥ 
बरणी नहिं जावें उपमा ॥
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गये जैमन हित ज्यौनार
जनक नृपके अँगना।
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जब जौनारि परसि गई सिगरी 
होय मंगला चार। 
कबि सुन्दर जौनार बनाई 
तिरियन हेत समार॥ 
जनक अति खुश मन माँ ॥
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गये जैमन हित ज्यौनार
जनक नृपके अँगना।
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गये जैमन हित ज्यौनार जनक नृपके अँगना | Lokgeet Gari Geet Lyrics in Hindi and English | Gaye Jaiman Hit Jyonar Janak Nrip Ke Angana

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Gaye jaiman hit jyaunāra
Janak nṛupake aganā
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Rām laṣhan aru bharat shatruhan 
Avadhapurī bhūpāla
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Jaimanahit tatkāla
Barātī baiṭhe aganā 
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Gaye jaiman hit jyaunāra
Janak nṛupake aganā
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Pātari parasike daunā parase 
Loṭā aur gilāsa 
Pūrī kachaurī dahī paras ke 
Dharau achār supāsa 
Bahut ānanda mānā 
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Gaye jaiman hit jyaunāra
Janak nṛupake aganā
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Seb imaratī bālūsāhī 
Madhu mevā pakamān miṭhāī 
Vyanjan paras samāra 
Baraṇī nahian jāvean upamā
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Gaye jaiman hit jyaunāra
Janak nṛupake aganā
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Jab jaunāri parasi gaī sigarī 
Hoya mangalā chāra 
Kabi sundar jaunār banāī 
Tiriyan het samāra 
Janak ati khush man mā
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Gaye jaiman hit jyaunāra
Janak nṛupake aganā
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गुरुवार, 15 मई 2025

सिव पूजत हो गौरी पूजत जनक दुलारी | Ram Bhajn Lyrics in Hindi & English | Shiv Pujat Ho Gauri Pujat Janak Dulari

सिव पूजत हो गौरी पूजत जनक दुलारी | Ram Bhajn Lyrics in Hindi & English | Shiv Pujat Ho Gauri Pujat Janak Dulari

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Ram Bhajn Lyrics in Hindi & English
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संपादक - प्रो० सूर्य प्रसाद दीक्षित
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भारतीय लोकसंस्कृति में देवी गौरी (पार्वती) की पूजा और भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है। अवधी क्षेत्र के इस लोकप्रिय लोकगीत “सिव पूजत हो गौरी” में देवी की पूजा, सीता की शिव भक्ति और धार्मिक भावनाओं का मनोहारी चित्रण मिलता है।
यह गीत न केवल धार्मिक श्रद्धा को दर्शाता है, बल्कि जनजीवन की सादगी और लोकधार्मिक भावनाओं को भी उजागर करता है।
यह गीत पारंपरिक अवधी भक्ति और विवाह संस्कार की झलक प्रस्तुत करता है।
गौरी पूजा मुख्यतः हिन्दू महिलाओं द्वारा की जाती है, जो परिवार की समृद्धि और सौभाग्य की कामना करती हैं।
शिव जी की आराधना विशेष रूप से विवाह योग्य कन्याओं के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
इस गीत के माध्यम से जनजीवन में धार्मिक अनुष्ठान और भावनाओं का सामंजस्य दिखता है।
“सिव पूजत हो गौरी” लोकगीत धार्मिक श्रद्धा, सांस्कृतिक विरासत और जनजीवन की सादगी का अनुपम उदाहरण है। यह गीत हमें याद दिलाता है कि कैसे हमारी लोकधार्मिक परंपराएँ पीढ़ी दर पीढ़ी संजोई जाती हैं।
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सिव पूजत हो गौरी 
पूजत जनक दुलारी 
बैठी फुलवारी।
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पाँचौ फूल पाँच बेल की पाती हो 
सीता हथवा में लीन्हें बाती 
बैठी फुलवारी ।
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फुलवै दूरि सीता शिव जी को पूजइँ हो 
अब अच्छत मारी दुइ चारी 
बैठी फुलवारी ।।
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अब शिव बाबा हो 
अब शिव भोले 
हँसले ठठारी 
बैठी फुलवारी ।। 
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जवन माँगन तुहुँ माँगो हो जानकी 
अब उहै माँगन हम देबई 
बैठी फुलवारी ।।
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अब सिव बाबा हो 
अब सिव भोले 
कब तक रहबै कुँवारी 
बैठी फुलवारी।
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सिव पूजत हो गौरी पूजत जनक दुलारी | Ram Bhajn Lyrics in Hindi & English | Shiv Pujat Ho Gauri Pujat Janak Dulari

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Siv pūjat ho gaurī 
Pūjat janak dulārī 
Baiṭhī fulavārī
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Pāchau fūl pāch bel kī pātī ho 
Sītā hathavā mean līnhean bātī 
Baiṭhī fulavārī 
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Fulavai dūri sītā shiv jī ko pūjai ho 
Ab achchhat mārī dui chārī 
Baiṭhī fulavārī 
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Ab shiv bābā ho 
Ab shiv bhole 
Hasale ṭhaṭhārī 
Baiṭhī fulavārī  
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Javan māgan tuhu māgo ho jānakī 
Ab uhai māgan ham debaī 
Baiṭhī fulavārī 
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Ab siv bābā ho 
Ab siv bhole 
Kab tak rahabai kuvārī 
Baiṭhī fulavārī
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भोजपुरी सोहर गीत : बोल और भावार्थ | ननद-भौजाई के रिश्ते, ससुराल के ताने और लोकसंस्कृति के रंग | Sohar Geet: Nanad-Bhaujai Bhojpuri Lokgeet ka Bhavarth aur Mahatva

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